राजस्थान में पिछले साल बिजली की मांग एक दिन में अधिकतम 16,000 मेगावाट रही। इस बार इसके 17,000 मेगावाट को पार करने का अनुमान है। मौजूदा बिजली संकट की चर्चा करें तो डिस्ट्रीब्यूशन तथा पावर ट्रांसफार्मरों के जलने, अत्यधिक भार के कारण तार टूटने जैसे कारणों से भी बिजली आपूर्ति बाधित होती है। उत्पादन में कमी के अलावा दूसरे कारण भी हैं जो बिजली संकट को बढ़ाते रहते हैं। खराब मीटर सुधारने, जले हुए ट्रांसफार्मर्स को तत्काल बदलने पर भी बिजली उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है।
बिजली संकट के इस दौर में यह संतोष की बात है कि देश में 49,346 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित हो गई है। इसमें राजस्थान 10,506 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित कर समूचे देश में शीर्ष पर है। इस लिहाज से सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित कर विकल्प के रूप में तैयार किए जाने की जरूरत है। हालांकि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत राजस्थान में 2300 मेगावाट की सोलर रूफ टॉप परियोजनाओं को स्थापित करने और उन्हें ग्रिड से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। सरकारी स्तर पर सौर ऊर्जा संयंत्रों को विशेष अनुदान भी देना होगा। आवासीय क्षेत्र के लिए 3 किलोवाट तक 40 प्रतिशत सब्सिडी और 3 किलोवाट से अधिक के लिए 20 प्रतिशत सब्सिडी निर्धारित है। रही बात बिजली छीजत की, लाख प्रयासों के बावजूद यह समस्या जस की तस है। इससे होने वाले नुकसान पर काबू पाकर गर्मियों में बिजली की संभावित कमी पर एक हद तक काबू पाया जा सकता है। निजी उत्पादन कंपनियों के साथ भी अभी से बातचीत कर मसौदा तय कर लेना चाहिए। (अ.कै.)