दावा करने वाले महंत ने जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में प्रतिवेदन देने की कही है बात राम मंदिर मुकदमे के मुख्या पक्षकारों में से एक महंत धर्मदास के कानूनी सलाहकार पूर्व न्यायाधीश वीरेंद्र ओझा का तर्क है कि 1949 में जब रामलला का प्राकट्य हुआ था उस समय यह मूर्ति महंत अभिराम दास के पास थी जिनकी पूजा उन्होंने ही शुरू की.मुकदमा शुरू होने के बाद जब रिसीवर बैठे तो यह मूर्ति सुप्रीमकोर्ट के आदेश के तहत अधिग्रहण में आ गयी,उन्होंने दावा किया कि मुकदमे के दौरान निर्मोही अखाड़े के महंत भास्कर दास ने भी गवाही दी है कि जब राम लला का प्राकट्य हुआ था उस समय मूर्ति अभिराम दास के पास थी. इस लिए राम मंदिर के पुजारी महंत अभिराम दास थे और अब उनकी गैरमौजूदगी में ये अधिकार उनके चेले और राम मंदिर के पक्षकार महंत धर्मदास के पास है और इस सम्बन्ध में अब वे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में प्रतिवेदन देंगे .बताते चलें कि अयोध्या में मंदिर मस्जिद विवाद में उस समय एक बड़ी उठापटक देखने को मिली जब आध्यात्म गुरु श्री श्री रविशंकर ने इस मामले के हल के लिए आपसी समझौते की बात कहते हुए दोनों पक्षकारों से मुलाक़ात का दावा किया था वहीँ अब इस नए दावे ने पूरे मामले को और पेंचीदा बना दिया है और आने वाले समय में इस मामले को लेकर भी विवाद की स्थिति पैदा हो सकती है क्यूंकि वर्तमान में रामलला की सेवा पूजा एक अन्य पुजारी कर रहे हैं .