
Pateshwari Devi Mandir Faizabad
फैजाबाद |शारदीय नवरात्र के चलते यु तो अयोध्या फैजाबाद जुडवा शहरो के सभी माँ के मंदिरों में भक्त श्रधालुओ का तांता लगा है लेकिन शर के कुछ प्रमुख सिध्पीठो में से एक है कैंट क्षेत्र स्थित माँ पाटेश्वरी देवी का मंदिर,जहां प्रतिदिन हज़ारो की संख्या में श्रद्धालु माँ के दिव्या स्वरूप का दर्शन कर भव्य आरती में हिस्सा लेने पहुच रहे है,ऐसी मान्यता है की सच्चे मन से यहाँ मांगी हुई हर मुराद पूरी होती है और अपनी मुराद पूरी होने पर भक्त मंदिर परिसर में हलवा और पूड़ी का प्रसाद माँ को अर्पित करते है |विशेष रूप से शारदीय नवरात्र में मंदिर परिसर में होने वाली विशेष आरती में शामिल होने दूर दूर से श्रद्धालु पहुचते है |
मागने पर पूरी होती है हर मुराद
प्राचीन पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था ।परन्तु सती के पति भगवान शिव को आमन्त्रित नही किया गया था ।जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नही हुये,लेकिन माता पार्वती जिद्द करके यज्ञ में शमिल होने चली गई,वहा भगवान शिव की निंदा सुनकर वह यज्ञ कुण्ड में कूद गईं । तब भगवान शिव सती के वियोग-विह्वल होकर सती का शव अपने कन्धे पर धारण कर सम्पूर्ण त्रिलोक भ्रमण करने लगे । भगवती सती ने तब आकाश में शिव को दर्शन दिये,और उनसे कहा क़ि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे वहां महाशक्ति पीठ का उदय होगा ।सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुये नृत्य (तांडव) करने लगे जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उतपन्न होने लगी ।इस पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड करने का विचार किया ।जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पाँव पटकते विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते इस प्रकार जहां-जहाँ सती के अंग के टुकड़े और आभूषण गिरते वहा-वहा शक्ति पीठ का उदय हुआ इस प्रकार यहाँ माता पार्वती का दाहिना जंघा गिरा था जहां आदि शक्ति माँ पाटेश्वरी देवी विराजमान है |
इतिहास में पौराणिक स्थल के रूप में दर्ज है ये प्राचीन मंदिर
तत्पश्चात् अंग्रेज अफसर मि.पी.कारनेगी,कमिशनर व सेटलमेंट अफसर फ़ैज़ाबाद के द्वारा सन् 1870 इस्वी में रचित-ए-हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फ़ैजाबाद गजेटियर में A pindix(A)में क्रम संख्या 184 पर आदि शक्ति माँ पाटेश्वरी देवी मन्दिर के बारे में वर्णित है । यह मन्दिर 4 एकड़ क्षेत्रफल में स्थित है ,तथा इसका जीर्णोद्धार सन् 1770 ई. में निकामुल महाजन द्वारा कराया गया ।गजेटियर के अनुसार यह मन्दिर सन् 1870 से लगभग 400 वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था ।
मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु लगाते हैं
मंदिर के पुजारी देवीशंकर द्विवेदी की माने तो पंचमी से लेकर नवमी तिथि तक मंदिर परिसर में भक्तो की भीड़ बढ़ जाती है ख़ास तौर पर माँ से मुराद पूरी होने पर माँ को हलवा पूड़ी चढाने के लिए श्रधालुओ की भीड़ जमा रहती है मंदिर के बगल स्थित कुंड लोगो की विशेष आस्था का केंद्र है जहा श्रद्धालु धार्मिक कर्मकांड संपन्न करते है ,मंदिर की व्यवस्था को चलाने के लिए समिति का निर्माण किया गया है जिसमे अध्यक्ष रूप में रामयश यादव और समिति के संयोजक के रूप में अभिजात सिंह बिसेन मंदिर की व्यवस्था और देखरेख करते है मीडिया प्रभारी पुनीत मिश्र ने बताया की शारदीय नवरात्र के दौरान सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक मंदिर परिसर में अनवरत विशाल भंडारे के अयोअजन किया जाता है जिसमे बड़ी संख्या में भक्त श्रद्धालु अपना सहयोग करते है और प्रसाद ग्रहण करते है |
Published on:
03 Oct 2016 11:33 am
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