निर्वाणी अनी अखाड़ा के श्री महंत धर्मदास ने बताया कि मठों और मंदिरों में रह रहे युवा साधुओं के लिए यह नियम बना कि वे कसरत करके शरीर को सुदृढ़ बनाएं और कुछ हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किए गए, जहां कसरत के साथ ही हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। ऐसे ही मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। सनातन संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए ही अखाड़े बने। हिंदू धर्म के अलग-अलग संप्रदायों से जुड़े अखाड़ों के नियम-कानून और परम्पराएं अलग हैं। अखाड़े में शामिल साधुओं को नागा की उपाधि दी जाती है। नागा का मतलब है जो अपनी बात पर अडिग रहे। देश और समाज की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दे। परिवार और रिश्ते-नातों को बुलाकर भगवान की सेवा पूजा और देश की रक्षा करे। जब-जब समाज पर कोई संकट आता है और धर्म पर खतरा उत्पन्न होता है तब अखाड़े के साधु भगवान की पूजा उपासना के साथ शस्त्र उठा कर देश और समाज के लिए संघर्ष करते हैं।
तीन मतों में बंटे 13 अखाड़े
देश में मुख्य रूप से 13 अखाड़े हैं। यह तीन मतों में बंटे हैं। यह हैं शैव सन्यासी संप्रदाय, इनके पास सात अखाड़े हैं। वैरागी संप्रदाय के पास तीन अखाड़े हैं। श्री निर्वाणी अखाड़ा अयोध्या इसी के तहत आता है। इसके अलावा तीसरा है उदासीन संप्रदाय। इसके भी तीन प्रमुख अखाड़े हैं।
कुश्ती और तलवारबाजी के हुनर सैनिक के समान
महंत धर्मदास ने बताया कि अखाड़े में मल्लयुद्ध विद्या और तलवारबाजी सहित अन्य कलाओं का ज्ञान नागा साधुओं को एक सैनिक की भांति दिया जाता है। अखाड़ों के नियम-कानून बहुत सख्त होते हैं। प्रात: काल उठने से लेकर स्नान, पूजा पाठ करने और रात्रि विश्राम तक के लिए समय नियत होता है। ब्रह्मचर्य का पालन नागा साधु की पहली शर्त है। गृहस्थ जीवन त्यागकर उसे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इसके लिए प्रत्येक नागा साधु को अयोध्या में हनुमान जी के सामने प्रतीक चिन्ह को साक्षी मानकर शपथ लेनी पड़ती है। इसके बाद ही उसे नागा साधु की उपाधि मिलती है।
ऐसे मिलती है नागा उपाधि
अखाड़े के नियम के अनुसार प्रत्येक 5 साल पर नागापना महोत्सव का आयोजन होता है। इसमें बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक के व्यक्ति को नागा परंपरा में दीक्षित किया जाता है। नागा साधु बनने से पहले उस व्यक्ति को अपने गुरु का चुनाव करना पड़ता है। गुरु का चुनाव करने के बाद ही गुरु दीक्षा मिलती है। अखाड़ों में नागा साधुओं की पूरी मंडली होती है। अखाड़ों के संचालन के लिए सेना की ही तरह प्रत्येक साधु के काम बांटे जाते हैं। पुजारी से लेकर कोठारी सुरक्षा व्यवस्था के लिए अलग-अलग नागा साधु होते हैं। भोजन बनाने के लिए भंडारी, अर्थव्यवस्था देखने के लिए मुख्तार होते हैं। इनका चयन अखाड़े के महंत करते हैं। अखाड़ों का संचालन समाज से मिलने वाले दान और चढ़ावे से होता है।