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गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद अहम् है ये जानकारी ज़रा सी लापरवाही से हो सकता है खतरा

locationफैजाबादPublished: Mar 23, 2018 11:50:25 am

0 वर्ष से कम और 35 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में गर्भाधारण की अवस्था में बढ़ जाते हैं खतरे

Important information related to pregnancy News In Hindi

Symptoms of Pregnancy

फैजाबाद : जिलाधिकारी डा0 अनिल कुमार के निर्देश पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने जनमानस में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से किशोरी बालिकाओं कोे स्वास्थ्य व पोषण हेतु महत्वपूर्ण जानकारी देते हुये बताया कि किशोरावस्था बचपन और व्यस्क जीवन के बीच की संवेदनशील अवस्था है, जिसमें कई शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों से किशोर व किशोरियों को गुजरना होता है. जिसमें किशोरियों का स्वस्थ व पोषित होना अत्यन्त आवश्यक है 10-19 वर्ष की अवस्था किशोरावस्था कहलाती है . किशोरवस्था के दौरान शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन जल्दी-जल्दी होते है. शारीरिक विकास सही हो पाये, इसके लिये उचित पोषण और स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होती है. पर्याप्त पोषण और पूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल में कमी होने से कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न हो सकती है, जैसे- एनीमिया, कुपोषण, प्रजन्न अंगो में संक्रमण (इन्फेक्शन), कम आयु में विवाह, व गर्भधारण के कारण माँ-बच्चे के जीवन को खतरा होना. इसके लिये किशोरियों को संतुलित तथा पौष्टिक भोजन लेना चाहिए. भोजन में मौजूद अलग-अलग तत्व शरीर को शक्ति/ऊर्जा देते हैं तथा हमारे शरीरे को बीमारियों से लड़ने में सहायता करते है. शरीर में अलग-अलग कार्य करने वाले भोजनों में चावल, आलू, गुड़, चीनी, घी एवं तेल शक्ति और ऊर्जा देने वाले, दाल, चना, मूंगफली, फलियां, दूध, अण्डे एवं मांस इत्यादि, वुद्धि और विकास में सहायक होने वाले तथा हरे पत्तेदार सब्जियो में पालक, मेथी, बथुआ एवं दाल तथा फल जैसे- पपीता, केला, संतरा, आंवला इत्यादि शरीर की रक्षा करने वाले संतुलित भोजन है भोजन मे बहुत अधिक मिर्च/मसाले का प्रयोग न करें. खाने में आयोडीन नमक का प्रयोग करें, आयोडीन एक आवश्यक पोषक तत्व है. यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है, आयोडीन की कमी होने से बच्चों की बौद्धिक क्षमता कम हो जाती है, आयोडीन की कमी से बच्चो व गर्भवती माताओं में गम्भीर स्वास्थ्य समस्यायें हो सकती है, जिनका कोई इलाज नही है.मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि अपने शरीर का सही तरीके से साफ-सफाई रखना चाहिए, व्यक्तिगत स्वच्छता द्वारा अपने शरीर में कीटाणुओं के प्रवेश को रोक सकते है तथा अपने आपको दस्त, फ्लू व अन्य बीमारियों से बचा सकते है. दस्त, डिसेंट्री, पेट मे कीड़े, श्वसन सम्बन्धी संक्रमण से बचने के लिये शौच के बाद और भोजन पकाने व खाने के पहले और बाद दोनो हाथो को रगड़ कर पानी और साबुन से धोएं, आंख का रोग, दांत में सड़ने से बचने के लिये चेहरे को पानी व साबुन से धोएं , भोजन के बाद दांत की सफाई करें, चर्म रोग, हुक वर्म, जूऐं और रिंग वर्म, डायरिया/दस्त से बचने के लिये नियमित स्नान करें, धुले वस्त्र पहने, शौचालय एवं मूत्रालय का प्रयोग करें. इसके अतिरिक्त किशोरावस्था के दौरान किशोरियों को मासिक धर्म के दिनो में विशेष साफ-सफाइियों का ध्यान रखन बहुत जरूरी है क्योकिं जरा सी लापरवाही के कारण संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
20 वर्ष से कम और 35 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में गर्भाधारण की अवस्था में बढ़ जाते हैं खतरे

मुख्य चिकित्साधिकारी ने किशोरियों के जीवन से जुड़ी हुई जानकारी के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुये कहा कि कानून के अनुसार किशोरियों का विवाह 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर ही होना चाहिए क्योंकि इससे पहले किशोरी तन और मन दोनों से विवाह की जिम्मेदारियां निभाने के लिये तैयार नही होती है, क्योंकि कम आयु (20 साल से कम) या फिर अधिक उम्र (35 साल से ज्यादा) में गर्भधारण करने से माँ तथा बच्चे के जीवन को खतरा हो सकता है. दोनो ही अवस्था में मातृ मृत्यु, कम वजन , मृत बच्चे के जन्म की संभावना बढ़ जाती है. 20 वर्ष से पहले गर्भधारण को टालने के उपाय ए0एन0एम0 आशा अथवा आंगनबाड़ी कार्यकत्री से समझे और प्राप्त किये जा सकते है. अधिक से अधिक ध्यान दें कि किशोरावस्था मे गर्भधारण न हो. यदि गर्भ ठहर भी जाये तो किशोरी की विशेष देखभाल करें, गर्भावस्था के दौरान, ए0एन0एम0 द्वारा कम से कम 3 बार जांच करवायें, आंगनबाड़ी कार्यकत्री के पास पंजीकृत तथा वजन की निगरानी करवायें, टी0टी0 के दो टीके लगवायें, आयरन की कम से कम 100 गोलियां खायें, गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त भोजन व पौष्टिक आहार लें. रोज कम से कम एक अतिरिक्त आहार लें। खाने मे हरी पत्तेदार सब्जियां, अंकुरित दालें और रसेदार खट्टे फल जैसे नींबू, आंवला जरूर खायें क्योंकि इससे शरीर मे आयरन की मात्रा बढ़ेगी व गर्भ में पलने वाला बच्चा भी स्वस्थ होगा, कम से कम 8-10 घण्टे आराम करें, जहां तक संभव हो प्रसव अस्पताल मे करायें.
नवजात शिशु के लिए बेहद आवश्यक है माँ का दूध प्रसव के 1 घण्टे के भीतर ही नवजात को कराएं स्तनपान

मुख्य चिकित्साधिकारी ने किशोरी मां व नवजात शिशु की देखभाल के बारे में जानकारी देते हुये बताया कि प्रसव के 1 घण्टे के भीतर ही नवजात स्तनपान कराना शुरू करें क्योकिं यह नवजात के लिए सर्वोत्तम आहार और सभी पोषक तत्व इसमें शिशु की जरूरत के अनुसार मौजूद है. पहलें छः माह तक शिशु को केवल मां का दूध पिलायें, पानी भी ना दें क्योकिं मां के दूध मे शिशु के लिये आवश्यक पानी होता है, 6 माह के बाद ही शिशु को ऊपरी आहार देना शुरू करें, छः महीने के बाद बच्चे की पोषण सम्बन्धी आवश्यकतायें केवल माँ के दूध से पूरी नही हो पातीं, इसलिए माँ के दूध के साथ-साथ बच्चे को ऊपरी आहार भी आवश्यक है। याद रहे कि ऊपरी आहार के साथ-साथ कम से कम दो वर्ष तक बच्चे को माँ का दूध पिलाते रहना जरूरी है,एक वर्ष तक के शिशु को सभी टीके लगवायें। पूर्ण टीकाकरण बच्चे को जानलेवा बीमारियों से बचाता है, जैसे कि- टी0बी0, गलघोंटू, काली, खांसी, टिटनेस, पोलियों और खसरा 9 माह पर खसरे के टीके के साथ विटाामिन ए की पहली खुराक (1/2चम्मच) दें। एक वर्ष के पश्चात् विटामिन ए की दूसरी से नौवीं खुराक छः-छः माह के अन्तराल पर जून व दिसम्बर माह मे होने वोल ‘‘बाल स्वास्थ्य पोषण माह‘‘ के दौरान दिलवायें.
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