जब तक रोटी की जरूरत शिक्षा के महत्व पर भारी पड़ेगी तब तक अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस जैसे दिन इन मासूम बच्चों के लिए सिर्फ एक दिन बनकर आते और जाते रहेंगे कैमरे के सामने यह बच्चे कुछ भी बोलने से कतराते रहे लेकिन ठेले पर फल बेच रहे राजू ने बताया कि उसके परिवार में पिता नहीं है दो बहने और मां है जिसके कारण उसे मेहनत मजदूरी करनी पड़ती है | कुछ ऐसी ही कहानी संतोष की भी है पिता बीमार है मां है नहीं दो भाई और एक बड़ी बहन की परवरिश की जिम्मेदारी उसके कंधों पर है इसलिए पान बेच रहा है | वही नाबालिग होने के बावजूद ऑटो रिक्शा चला रहे सुरेश ने बताया कि अगर स्कूल जाकर वह पढ़ाई करेगा तो भूखे पेट सोना पड़ेगा | पढ़ाई के लिए भी पैसे की जरूरत है जो उसके पास है नहीं इसलिए ऑटो रिक्शा चलाता है खुद नहीं पढ़ सकता लेकिन अपने भाई-बहनों को पढ़ा रहा है | यह समाज की वह तस्वीर है जो सरकारों के सर्व शिक्षा अभियान को मुंह चिढ़ा रही हैं | अब यह मजबूरी ही है जिसके चलते यह बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे और अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए मेहनत मजदूरी कर रहे हैं | जब तक रोटी की जरूरत शिक्षा के महत्व पर भारी पड़ेगी तब तक अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस जैसे दिन इन मासूम बच्चों के लिए सिर्फ एक दिन बनकर आते और जाते रहेंगे |