रेट को लेकर गोली भी चल चुकी है पहले मजदूर धान की बुवाई को लेकर 25 सौ रुपया प्रति किला (बीघा) लेते थे। पंजाब के मजदूर इस बार ₹5000 मांग रहे हैं। किसानों का तर्क है कि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तो बढ़ा नहीं। वह मजदूर को पैसा बढ़ाकर कहां से दें। यही नहीं इस बहसबाजी में मजदूरों ने हर गांव में अपनी यूनियन बना ली है। इसी यूनियन के माध्यम से पूरे पंजाब में ऐलान करवा दिया कि जो भी मजदूर कम रेट पर धान लगाएगा, उसे पंजाब से बाहर भेज दिया जाएगा। उसे यहां काम नहीं करने दिया जाएगा। इस बात को लेकर अमृतसर के कस्बा लोपोके के गांव पंढेर में किसानों मजदूरों में झड़प भी हो चुकी है। इस झड़प में गोली तक चल चुकी है। इसके बावजूद पंजाब के मजदूर कम पैसे पर काम करने को राजी नहीं हैं।
पांच हजार रुपये प्रति किला रेट तय पंजाब किसान मजदूर यूनियन के नेता सरवन सिंह कहते हैं कि यही मौका है जब हम अपनी मर्जी से पैसा कमा सकते हैं। कोरोना काल में लगभग शहर और ग्रामीण इलाकों से जो लोग बेरोजगार हुए वह धान की बुवाई के लिए मजदूर बन गए और हमारे साथ जुड़ गए। अब हम लोगों ने संगठन बना लिया है और एक रेट तय कर दिया है कि ₹5000 प्रति किला के हिसाब से धान की बिजाई की जाएगी। अगर कोई इससे कम लेता है तो उसे काम नहीं करने दिया जाएगा। अगर उसकी सूचना हमें मिलती है तो हम उसका काम बंद करवा देंगे।
पंजाब किसान मजदूर यूनियन के नेता का तर्क इसी तरह पंजाब किसान मजदूर यूनियन के नेता इंदरजीत सिंह चंदेल कहते हैं कि अगर हम अब रेट बढ़ाएंगे तो आगे धान का रेट बढ़ेगा। अगर हम कम पैसे में मजदूरी करेंगे तो हमारे घर का गुजारा कैसे होगा। उन्होंने कहा कि किसान तो चाहता है कि वह फ्री में काम करवा दे, पर खाना सब को खाना है। अगर हम लोगों ने रेट तय कर दिया है तो इसमें गलत क्या किया है।
क्या कहते हैं किसान धान के बड़े किसान बचित्तर सिंह कहते हैं बाहर से आने वाले मजदूर नहीं आ पाए। इस कारण जिस तरह की बिजाई हम लोग चाहते हैं, उस तरह से काम नहीं हो पा रहा है। बाहर से आकर काम करने वाला मजदूर एक दिन में ढाई हजार रुपया प्रति किला के हिसाब से पैसे लेकर दो से तीन एकड़ जमीन में धान लगा देता है। पंजाब के नौजवान यह काम एक एकड़ में भी नहीं कर पाते हैं। एक तरफ तो सीजन निकल रहा है और दूसरी तरफ यह मुंहमांगी मजदूरी मांग रहे हैं। यूनियन तक बना ली है। धान की बुवाई मुश्किल हो रही है।