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गंगा किनारे के शहरों में हवा हुई जहरीली, एक लाख में 300 की मौत

locationफर्रुखाबादPublished: May 23, 2018 05:56:59 pm

वायु प्रदूषण बढकऱ खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। नतीजा यह हुआ है कि गंगा-यमुना के दोआब में जहरीली हवा के कारण जिंदगी छोटी हो गई है।

फर्रुखाबाद

गंगा किनारे के शहरों में हवा हुई जहरीली, एक लाख में 300 की मौत

फर्रुखाबाद . हवा बीमार है, नतीजे में इंसानों की मौत जारी है। हमारी-आपकी छोटी-छोटी लापरवाही के कारण वायु प्रदूषण बढकऱ खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। नतीजा यह हुआ है कि गंगा-यमुना के दोआब में जहरीली हवा के कारण जिंदगी छोटी हो गई है। लोगों की वक्त से पहले मौत का सिलसिला जारी है। वायु प्रदूषण से प्रति एक लाख आबादी पर 150 से 300 तक मौतों का आंकड़ा सामने आया है। कारण मालूम हुआ है कि जहरीली हवा के कारण फेफड़ों में कैंसर, हार्ट अटैक और फेफड़ों में संक्रमण। इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा किया है एक रिपोर्ट ने, जिसे सेंटर फार एनवायरोमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) और आईआईटी – दिल्ली की गंगा के मैदानी इलाकों में 11 शहरों में वायु प्रदूषण का अध्ययन के बाद तैयार किया है। रिपोर्ट बताती है कि यूपी में कानपुर की हवा सबसे ज्यादा जहरीली है, जबकि लखनऊ दूसरे नंबर पर है।

जहरीली हवा से कानपुर में एक साल में हुई 4173 मौत

गंगा के मैदानी इलाकों में प्रदूषण की वजह से सेंटर फार एनवायरोमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) और आईआईटी – दिल्ली की टीम ने सर्वे के लिए यूपी के आगरा , इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, वाराणसी और गोरखपुर के साथ ही बिहार के पटना, मुजफ्फरपुर और गया तथा झारखंड के रांची शहर को शामिल किया था। उपर्युक्त शहरों में रांची एकमात्र ऐसा शहर था, जोकि गंगा किनारे नहीं आबाद है। रांची को छोड़ सभी शहरों में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) राष्ट्रीय औसत से दोगुना और डबल्यूएचओ के मानक से आठ गुना ज्यादा पाया गया है। मेरठ और आगरा में सबसे अधिक प्रदूषण पाया गया है। अध्ययन में पाया गया है कि मेरठ में बच्चों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मेरठ व आगरा में सर्वाधिक प्रति लाख 290 मौतें और लखनऊ में 250 मौतें जहरीली हवा के कारण होती हैं। सीड के प्रोग्राम डायरेक्टर अभिषेक प्रताप और सीनियर प्रोग्राम आफिसर अंकिता ज्योति ने बताया कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित उत्तर भारत के शहरों में समयपूर्व मृत्युदर बढ़ी है। यह रिपोर्ट पिछले 17 साल के डाटा के आधार पर तैयार की गई है।

यूपी में बीस साल में बे-वक्त मौत की संख्या तेजी से बढ़ी

रिपोर्ट बताती है कि सालाना कानपुर में सर्वाधिक 4173 मौतें होती हैं, जबकि लखनऊ में 4127 लोगों की मृत्यु हो जाती है। स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश में बीते दो दशकों में असमय मौतों की संख्या बढ़ गई है। सीड की सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने कहा कि वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव दिन प्रति दिन बढ़ रहा है। लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने वालों में बीमारियां बढ़ रही हैं, जिससे वह असमय मौत के शिकार हो रहे हैं। स्थिति यह है कि असमय मृत्यु-दर (प्रीमैच्योर मोर्टेलिटी) चिंताजनक ढंग से बढकऱ प्रति लाख आबादी पर 150-300 व्यक्ति के करीब पहुंच गई है। आइआइटी दिल्ली और मुंबई द्वारा इस संदर्भ में प्रदेश के जिला अस्पतालों से एकत्र किया गया है, यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है कारण यह है कि बहुत सी मौतों को रजिस्टर ही नहीं किया जाता है।

पेड़-पौधों पर भी जहरीली हवा का घातक असर पड़ रहा है

रिपोर्ट के अनुसार, सभी शहरों में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) का स्तर राष्ट्रीय मानक (40 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर) से दो गुना ज्यादा और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वार्षिक औसत सीमा तीन से आठ गुना ज्यादा है। उत्तर प्रदेश के जिन सात शहरों को अध्ययन में शामिल किया गया है, उनमें गंगा के मैदानी क्षेत्र के पश्चिमी छोर पर बसे मेरठ और आगरा जैसे शहरों में समस्या सबसे ज्यादा है। एयरोसोल पर आधारित विश्लेषण के अनुसार गंगा के मैदानी क्षेत्र में पीएम 2.5 पश्चिम से पूर्वी इलाकों की ओर जा रहा है। वाराणसी में पीएम 2.5 का विस्तार सबसे तेज पाया गया है। मेरठ, आगरा, लखनऊ, वाराणसी और गोरखपुर में पीएम 2.5 की बढ़ती रफ्तार अलार्मिंग स्तर पर आ चुकी है। वहीं कानपुर और इलाहाबाद में यह मॉडरेट स्तर पर है। मेरठ में वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। रिपोर्ट बीते 17 सालों में पीएम 2.5 के औसत पर आधारित है, जिसे सेटेलाइट डाटा की मदद से तैयार किया गया है। वायु प्रदूषण की वजह से कई बीमारियां हो जाती हैं। मुख्य रूप से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), इश्चिमिक हार्ट डिजीज (आइएचडी), स्ट्रोक, लंग कैंसर व एक्यूट लोअर रेस्पिरेट्री इंफेक्शन की बीमारियां जहरीली हवा की देन हैं।
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