1950 के दशक में इस पार्क में जाने के लिए टिकट लगता था। इस पार्क के अंदर चिड़िया, हिरन, बहुत प्रकार के पक्षी हुआ करते थे। राजनीति के चलते वर्तमान समय में पार्क में आबारा जानवरों ने अपना घर बना लिया है। उसी के अंदर बरसात का पानी भर जाता है। आज उस पार्क के अंदर लोगों के लिए बैठने की साफ जगह भी नहीं है। जब से देश आजाद हुआ है तब से अबतक किसी भी चेयरमैन या विधायक ने इस पार्क के सुंदरीकरण कराने के लिए बीणा नहीं उठाया है।जब नगर पालिका का पांच साल बाद चुनाव आता है तो चुनाव मैदान में लड़ने वाले लोग इस पार्क को चुनावी मुद्दा बनाते चले आ रहे लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह लोग इसको भूल जाते हैं। जिस कारण देश के वीर सपूतों को अपनी छाती पर बैठाने वाला यह ऐतिहासिक पार्क आज के नेताओ को देख कर रो रहा है। पूर्व चेयरमैन ने कई बार कहा कि इस पार्क को नया लुक दिया जाएगा लेकिन यह लगता है कि केवल कागजों में ही सुंदर पार्क बनता रहेगा।
आखिर पार्क क्यों बना राजनीति अखाड़ा
यह पार्क जो आजादी का जीता जागता सबूत है फिर भी कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, उसने केवल बयान बाजी की जो भी सरकार बनी उसने सपा सरकार के लोगों ने ज्यादा इस्तेमाल किया। सपा वालों ने कहा कि भाजपा कांग्रेस सरकार ने इस पार्क को बनाने के लिए कहा था इसी प्रकार से एक दूसरे के ऊपर आरोप लगाकर अपना अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। वहीं हाल चेयरमैन का रहा है जिस बजह से पटेल पार्क अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। इस पार्क के मुख्य गेट पर पुलिस चौकी की स्थापना इसी बजह से की गई थी कि इस पार्क में लोग अपने परिवार के साथ टहलने आते थे। उनके साथ कोई खुरा पात न करे व उनकी सुरक्षा बनी रहे।
कौन बनवाएगा यह पार्क
इस बार के निकाय चुनाव में कौन अपना मुद्दा बना रहा है। उसके बाद इस ऐतिहासिक पार्क को कौन निर्माण कराता है।यह वही आदमी हो सकता है जिसको अपने आजादी के वीरों पर गर्व होगा।