पिंडदान में खोवे के 16 पिंड बनाये, जिनको पितरों की संज्ञा दी जाती है, फिर उनको शहद, तिल, लौंग, इलायची, पान, कुशा, आंवला, देशी घी, दूध, साम्रगी के साथ धूप दीप दिखाकर उनको विदाई दी। उसके बाद श्री कैलाश चैरिटेविल ट्रस्ट के तत्वाधान में पितरों की विदाई के उपलक्ष्य में बनारस की तर्ज पर महा आरती का आयोजन किया गया। गंगा की आरती वैदिक मंत्रोच्चार के बीच की गई, जिसमें कई भक्तों ने अपने-अपने भजन गाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। आचार्य प्रदीप नारायण के अनुसार तर्पण व पिण्डदान के कार्यक्रम की शुरुआत चार साल पहले की गई थी, उस समय यहां के भक्तगण अपने हिसाब से तर्पण व पिण्ड दान किया करते थे। उन्होंने बताया कि शुरू में मेरे पास केवल पांच लोगों ने तर्पण करना शुरू किया था, परन्तु वर्तमान समय मे जो अपने पूर्वजों का सम्मान करते हंै, उनकी संख्या बहुत अधिक हो गई है, जो समय चल रहा है, उससे आंकलन किया जाए तो संख्या बहुत अधिक है। क्योंकि जिस प्रकार से बहुत सी युवा पीढ़ी अपनी भारतीय संस्कृति को भूल रही है, जब वह बाहर के कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त कर अपने परिवार के बीच आता है तो उसे अपने वंसजों के बारे में जानकारी नहीं होती। यदि घर का कोई मुखिया जानकारी अपने बच्चों को देते रहेंगे तो हमारी संस्कृति जीवित रहेगी। महाआरती के समय सदर विधायक की पत्नी, संजीव बाजपेई, आशुतोष त्रिपाठी, लल्लु भाई, जवाहर मिश्रा, जितेंद्र दीक्षित, आनंद मिश्रा, सोनू, प्रदीप, केसी शुक्ला सहित सैकड़ों भक्त मौजूद रहे।