बंगाली समुदाय के लोग पोइला बोइशाख के दिन को नए साल के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को नए साल की बधाइयां देते हैं। शुभकामना संदेश भेजते हैं। परिवार ही नहीं बल्कि दोस्तों और करीबी रिश्तेदारों के बीच इस नए साल का जश्न धूमधाम से मनाया जाता है। इस सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। हर घर में नए साल की खुशी में ढेरों पकवान बनाकर तैयार किए जाते हैं। इस साल 2023 में पोइला बोइशाख या बंगाली नववर्ष शनिवार 15 अप्रैल को मनाया जाएगा। पत्रिका.कॉम के इस लेख में जानें बंगाली नव वर्ष इस दिन का इतिहास और महत्व…
जानें बंगाली नव वर्ष का रोचक इतिहास
बंगाली नव वर्ष के इतिहास को लेकर अलग-अलग विचार और मत हैं। मान्यता है कि बंगाली युग की शुरुआत 7वीं शताब्दी में राजा शोशंगको के समय हुई थी। इसके अलावा एक और मत यह भी है कि चंद्र इस्लामिक कैलेंडर और सूर्य हिंदु कैलेंडर को मिलाकर ही बंगाली कैलेंडर की स्थापना हुई थी। वहीं इसके अलावा कुछ ग्रामीण हिस्सों में बंगाली हिंदु अपने युग की शुरुआत का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को भी देते हैं। इनका मानना है कि बंगाली कैलेंडर की शुरुआत 594 ईसा पूर्व में हुई थी।
यहां जानें पोइला बोइशाख का महत्व
बंगाली समुदाय के लोगों के बीच पोइला बोइशाख का दिन बहुत खास दिन माना जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं। कुछ दिन या महीने भर पहले से ही घर की साफ-सफाई और पेंट का कार्य शुरू हो जाता है। इस दिन लोग मंदिर जाकर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। फिर घर लौटकर तरह-तरह के पकवानों का आनंद लेते हैं। इस दिन गौ पूजन, नए कार्य की शुरुआत, अच्छी बारिश के लिए बादल पूजा आदि का भी महत्व माना जाता है। पोइला बोइशाख पर लोग सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव के साथ ही भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। घर पर रिश्तेदार और दोस्तों का आना-जाना दिनभर लगा रहता है। लोग एक दूसरे को ‘शुभो नोबो बोरसो’ (नए साल की शुभकामनाएं) कहकर एक-दूसरे को नव वर्ष की बधाई देते हैं। यह सिलसिला एक महीने तक जारी रहता है।