भाई दूज दीपावली पर्व के पांचवे दिन व दिवाली से के तीसरे दिन भाई-बहन के प्यार के प्रतीक भाईदूज मनाया जाएगा। 16 नवंबर को पड़ने वाले भाई दूज के साथ ही दीपोत्सव का समापन हो जाता है। इस दिन ही दीपोत्सव का समापन हो जाता है। यह त्यौहार भाई-बहन के लिए बेहद ही खास होता है। रक्षाबंधन की तरह भाईदूज का महत्व भी बहुत ज्यादा होता है। इस दिन बहनें भाईयों को सूखा नारियल देती हैं। साथ ही उनकी सुख-समृद्धि व खुशहाली की कामना करती हैं।
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भाई दूज हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें व्रत, पूजा और कथा आदि करके भाई की लंबी आयु और समृद्धि की कामना करते हुए माथे पर तिलक लगाती हैं। इसके बदले भाई उनकी रक्षा का संकल्प लेते हुए तोहफा देता है। पंडितों व ज्योतिष के जानकारों अनुसार, भाई दूज के दिन शुभ मुहूर्त में ही बहनों को भाई के माथे पर टीका लगाना चाहिए। मान्यता है कि भाई दूज के दिन पूजा करने के साथ ही व्रत कथा भी जरूर सुननी और पढ़नी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।तो आइए जानते हैं कि इस वर्ष भाई दूज का शुभ मुहूर्त और क्यों मनाया जाता है भाई दूज…
भाई दूज का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व के शुभ मुहूर्त की बात करें तो भाई दूज के तिलक का समय दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
भाई दूज तिलक का समय :13:10:03 से 15:18:27 तक
अवधि :2 घंटे 8 मिनट
भाई दूज पर होने वाले रीति रिवाज़ और विधि
हिंदू धर्म में त्यौहार बिना रीति रिवाजों के अधूरे हैं। हर त्यौहार एक निश्चित पद्धति और रीति-रिवाज से मनाया जाता है।
: भाई दूज के मौके पर बहनें, भाई के तिलक और आरती के लिए थाल सजाती है। इसमें कुमकुम, सिंदूर, चंदन,फल, फूल, मिठाई और सुपारी आदि सामग्री होनी चाहिए।
: तिलक करने से पहले चावल के मिश्रण से एक चौक बनायें।
: चावल के इस चौक पर भाई को बिठाया जाए और शुभ मुहूर्त में बहनें उनका तिलक करें।
: तिलक करने के बाद फूल, पान, सुपारी, बताशे और काले चने भाई को दें और उनकी आरती उतारें।
: तिलक और आरती के बाद भाई अपनी बहनों को उपहार भेंट करें और सदैव उनकी रक्षा का वचन दें।
भाई दूज की कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। यमराज को कई बार उनकी बहन यमुना ने मिलने बुलाया था। लेकिन, अपने कार्य में व्यस्त यमराज कभी बात को टालते रहे तो कभी यम जा ही नहीं पाए।
फिर एक दिन यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया और अचानक यमराज अपनी बहन से मिलने पहुंच गए। उन्हें देख यमुना बेहद खुश हुईं। यमुना ने यमराज का बड़े ही प्यार से आदर-सत्कार किया। यमराज को उनकी बहन ने तिलक लगाया और उनकी खुशहाली की कामना की। साथ ही उन्हें भोजन भी कराया। यमराज इससे बेहद खुश थे। उन्होंने अपनी बहन को वरदान मांगने को कहा। इस पर यमुना ने मांगा कि हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आप मेरे घर आया करो। वहीं, इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाएगा और तिलक करवाएगा उसे यम व अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा।
यमराज ने तथास्तु कहकर अपनी बहन का वरदान पूरा किया और यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह ली। तभी से भाई दूज का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।