ज्योतिष व धर्म के जानकारों के अनुसार सावन में सूर्य की पूजा पर्जन्य के रूप में करनी चाहिए। माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य नारायण की पूजा अर्चना करने से उनके आशीर्वाद के फलस्वरूप व्रती के सभी तरह के कष्ट मिट जाते हैं।
इसके अलावा सूर्यदेव की कृपा से साधक को धन की प्राप्ति भी होती है। माना जाता है कि सूर्य देव को भानु सप्तमी के दिन ऊं घृणि सूर्याय नम: मंत्र के साथ जल चढ़ाने से यादाश्त बढ़ने के साथ ही मन भी एकाग्र होता है।
भानु सप्तमी की पूजा
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार भानु सप्तमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर व्रती को साफ कपड़े पहनने चाहिए। वहीं इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पूजा स्थल पर बैठना चाहिए। पूजा के दौरान सूर्य देव की लाल चंदन, अक्षत्, लाल फूल, धूप, गंध आदि से श्रद्धापूर्वक व विधि के अनुसार पूजा करनी चाहिए। इसके बाद सूर्य देव की गाय के घी वाले दीपक व कपूर से आरती करनी चाहिए।
सूर्य देव की आरती के बाद स्वच्छ तांबे के पात्र में गंगाजल मिश्रित जल लेकर उसमें अक्षत्, लाल फूल और लाल चंदन डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही इस दौरान सूर्यदेव के मंत्र ‘ओम सूर्याय नमः‘ या ‘ऊं घृणि सूर्याय नम:’ का जाप करना चाहिए। भानु सप्तमी के दिन नमक का किसी भी तरह से खाने में उपयोग नहीं करना चाहिए।
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पंडित शर्मा के अनुसार भानु सप्तमी के दिन दान से पुण्य बढ़ने के साथ ही लक्ष्मीजी भी प्रसन्न होती हैं। ऐसे में इस दिन सामर्थ्य के अनुसार गरीबों और ब्राह्मणों को दान अवश्य देना चाहिए। वहीं पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह व्रत करने से पिता और पुत्र में कभी तकरार नहीं होती और प्रेम बना रहता है।
भानु सप्तमी व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में इंदुमती नाम की एक वैश्या ने एक बार उसने ऋषि वशिष्ठ से पूछा कि, ‘मुनिराज मैंने आज तक कोई भी धार्मिक काम नहीं किया है लेकिन मेरी इच्छा है कि मृत्यु के बाद मैं मोक्ष को प्राप्त करूं तो यह कैसे संभव है ?’
इंदुमती की इस बात पर वशिष्ठ जी ने जवाब देते हुए कहा कि महिलाओं को मुक्ति, सौभाग्य, और सौंदर्य देने वाला अचला सप्तमी या भानु सप्तमी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। ऐसे में जो कोई भी स्त्री इस दिन सच्चे मन से पूजा करती है और व्रत रखती है उसे मनचाहा फल प्राप्त होता है, इसलिए तुमको भी अगर मोक्ष की चाहत है तो तुम भी इस व्रत को करो, ध्यान रहे इस दिन विधि पूर्वक पूजन आदि करना चाहिए, जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा ।
वशिष्ठ जी की बात सुनकर इंदुमती ने इस व्रत का पालन किया और मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग की मिला। स्वर्ग में उन्हें अप्सराओं की नायिका बनाया गया, इसी मान्यता के आधार पर इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है।