सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री स्कंदमाता के बारे में हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार देवी स्कंदमाता ही हिमालय की पुत्री हैं और इस वजह से इन्हें पार्वती भी कहा जाता है। महादेव की अर्धांगिनी होने के कारण इन्हें माहेश्वरी भी कहते हैं। इनका वर्ण गौर है इसलिए इन्हें देवी गौरी के नाम से भी जाना जाता है। माँ कमल के पुष्प पर विराजित अभय मुद्रा में होती है इसलिए इन्हें पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहा जाता है। भगवान स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं की सेनापति भी बनी थीं स्कंदमाता।
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से उन्होंने स्कंद को गोद में पकड़ा हुआ है, नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम गौर है और ये कमल के आसन पर विराजमान होकर शेर की सवारी करती है। संतान प्राप्ति के
लिए ऐसे करें स्कंदमाता की पूजा
नवरात्रि के पांचवें दिन संतान सुख की कामना से सुबह गंगाजल मिले जल से स्नान करें। संभव हो तो पूजा में श्वेत वस्त्र ही धारण करें। अब घर के मंदिर या पूजा स्थल में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें गंगाजल से शुद्धिकरण करें। अब एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें और उसे चौकी पर रखें। अब स्कंदमाता को हल्दी-कुमकुम, धूप-दीपक आदि पूजन के बाद नैवेद्य व फल में केले का भोग लगाकर श्रद्धापूर्वक आरती उतारें।