पौराणिक शास्त्रों के अनुसार राजा भगीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर उनके पुरखों की मुक्ति के लिए ब्रह्मा जी के कमंडल से निकलकर भगवान शिव की जटाओं से होती हुईं ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को धरती पर अवतरित हुई। गंगा दशहरा पर सूर्यवंशी राजा भगीरथ का पीडिय़ों का परिश्रम व तप सफल हुआ और हम धरतीवासियों को मां गंगा का अनुपम वरदान मिला। मां गंगा हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। आर्य-अनार्य, वैष्णव-शैव सभी ने एक स्वर में इसके महत्त्व को स्वीकार किया है। जीवन में एक बार भी गंगा में स्नान न कर पाना जीवन की अपूर्णता का द्योतक माना जाता है।
ऋग्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्ममण ग्रंथों के साथ रामायण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण में पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरितश्रेष्ठा एवं महानदी के रूप में गंगा मैया का यशोगान मिलता है। इनमें सर्वाधिक व्यापक पौराणिक मान्यता गंगा के श्रीहरि विष्णु के पैर के अंगूठे से निकलने की है। गंगोत्पत्ति से जुड़ी एक अन्य कथा के मुताबिक भगवान विष्णु द्वारा वामन रूप में राक्षसराज बलि से त्रिलोक को मुक्त करने की खुशी में ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वे स्वर्ग नदी के रूप में देवलोक को तृप्त करने लगीं। प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि स्वर्ग नदी गंगा धरती (मृत्युलोक) आकाश (देवलोक) व रसातल (पाताल लोक) को अपनी तीन मूल धाराओं भागीरथी, मन्दाकिनी और भोगावती के रूप में अभिसिंचित करती हैं।