scriptगंगा सप्तमीः पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरितश्रेष्ठा है गंगा मैया, दर्शन मात्र से दूर होते हैं सब पाप | Ganga saptami special story in hindi | Patrika News

गंगा सप्तमीः पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरितश्रेष्ठा है गंगा मैया, दर्शन मात्र से दूर होते हैं सब पाप

Published: Apr 22, 2018 09:39:04 am

जिस दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है।

ganga,astrology tips in hindi,hindu festivals,dharma karma,jyotish tips in hindi,ज्योतिष,

ganga arti

गंगा भारत की ही नहीं वरन विश्व की परम पवित्र नदी है। इस तथ्य को भारतीय ही नहीं विदेशी विद्वान भी स्वीकार करते हैं। जिस तरह संस्कृत भाषा को ‘देववाणी’ की मान्यता प्राप्त है, उसी प्रकार गंगा को ‘देव नदी’ की। गंगा न सिर्फ हमारी राष्ट्रीय नदी है वरन यह हमारी मां है। इसके तटों पर ही हमारी सभ्यता व संस्कृति पुष्पित पल्लवित हुई है। गंगा सप्तमी पतित पावनी मां गंगा की उत्पत्ति का पावन पर्व है। शास्त्र कहते हैं कि जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है।
गंगा स्नान बिना जीवन है अपूर्ण
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार राजा भगीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर उनके पुरखों की मुक्ति के लिए ब्रह्मा जी के कमंडल से निकलकर भगवान शिव की जटाओं से होती हुईं ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को धरती पर अवतरित हुई। गंगा दशहरा पर सूर्यवंशी राजा भगीरथ का पीडिय़ों का परिश्रम व तप सफल हुआ और हम धरतीवासियों को मां गंगा का अनुपम वरदान मिला। मां गंगा हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। आर्य-अनार्य, वैष्णव-शैव सभी ने एक स्वर में इसके महत्त्व को स्वीकार किया है। जीवन में एक बार भी गंगा में स्नान न कर पाना जीवन की अपूर्णता का द्योतक माना जाता है।
श्रीहरि के अंगूठे से निकास
ऋग्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्ममण ग्रंथों के साथ रामायण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण में पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरितश्रेष्ठा एवं महानदी के रूप में गंगा मैया का यशोगान मिलता है। इनमें सर्वाधिक व्यापक पौराणिक मान्यता गंगा के श्रीहरि विष्णु के पैर के अंगूठे से निकलने की है। गंगोत्पत्ति से जुड़ी एक अन्य कथा के मुताबिक भगवान विष्णु द्वारा वामन रूप में राक्षसराज बलि से त्रिलोक को मुक्त करने की खुशी में ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वे स्वर्ग नदी के रूप में देवलोक को तृप्त करने लगीं। प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि स्वर्ग नदी गंगा धरती (मृत्युलोक) आकाश (देवलोक) व रसातल (पाताल लोक) को अपनी तीन मूल धाराओं भागीरथी, मन्दाकिनी और भोगावती के रूप में अभिसिंचित करती हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो