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भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती का वरदान लाती है गणगौर

Published: Apr 09, 2016 05:02:00 pm

गणगौर तृतीया पर्व का आयोजन चैत्र शुक्ल तृतीया को शिव एवं शक्ति स्वरूपा पार्वती की असीम कृपा प्राप्त करने हेतु किया जाता है

gangaur puja vidhi

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गणगौर तृतीया पर्व का आयोजन शिव एवं शक्ति स्वरूपा पार्वती की असीम कृपा प्राप्त करने हेतु किया जाता है। यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। गणगौरी उत्सव स्त्रियों के द्वारा किया जाता है। धर्मशास्त्रों में इसे गौरी उत्सव, गौरी तृतीया, ईश्वर गौरी, के नाम से भी जाना जाता है।

चैत्रशुक्लतृतीयायां गौरीमीश्वरसंयुताम्। सम्पूज्य दोलोत्सवं कुर्यात् ।।

गणगौरी पूजन विधि

सामान्यत: इस पर्व को तीज के दिन मनाया जाता है, इस व्रत को करने के लिए प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व प्रतिदिन की नित्यक्रियाओं से निवृत होने के बाद, साफ-सुन्दर वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल में गंगा जल छिड़ककर शुद्ध करना चाहिए। घर के एक शुद्ध और एकान्त स्थान में पवित्र मिट्टी से 24 अंगुल चौड़ी और 24 अंगुल लम्बी अर्थात चौकोर वेदी बनाकर, केसर चन्दन तथा कपूर से उस पर चौक पूरा जाता है और बीच में देवी तथा शिव मूर्ति की स्थापना करके उसे फूलों से, फलों से, दूब से और रोली आदि से उसका पूजन किया जाता है।

पूजन में मां गौरी के दस रूपों की पूजा की जाती है। मां गौरी के दस रूपों में गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, भोग वद्र्विनी और अम्बिका है। शक्ति के सभी रूपों की पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को दिन में केवल एक बार ही दूध पीकर इस व्रत को करना चाहिए। इस व्रत को करने से उपवासक के घर में संतान, सुख और समृद्धि की वृद्धि होती है। इस व्रत में लकडी की बनी हुई अथवा किसी धातु की बनी हुई शिव-पार्वती की मूर्तियों को स्नान कराने का विधान है। प्रतिमाओं को सुन्दर वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है। इसके पश्चात उनका श्रद्धाभक्ति से गंध पुष्पादि से पूजन किया जाता है। देवी-देवताओं को झूले में अथवा सिंहासन में झुलाने का भी विधि-विधान है।

गणगौर व्रत महत्व

एक बार महादेव पार्वती वन में गए चलते-चलते गहरे वन में पहुंच गए तो पार्वतीजी ने कहा- भगवान, मुझे प्यास लगी है। महादेव ने कहा, देवी देखो उस तरफ पक्षी उड़ रहे हंै। वहां जरूर ही पानी होगा। पार्वती वहां गई। वहां एक नदी बह रही थी। पार्वती ने पानी की अंजुलि भरी तो दूब का गुच्छा आया, और दूसरी बार अंजुलि भरी तो टेसू के फूल, तीसरी बार अंजुलि भरने पर ढोकला नामक फल आया। इस बात से पार्वतीजी के मन में कई तरह के विचार उठे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया।

महादेवजी ने बताया कि, आज चैत्र माह की तीज है। सारी महिलाएं, अपने सुहाग के लिये गौरी उत्सव करती हंै। गौरी जी को चढाए हुए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे हंै। पार्वतीजी ने विनती की, कि हे स्वामी, दो दिन के लिए, आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें, जिससे सारी स्त्रियां यहीं आकर गणगौरी के व्रत उत्सव को करें, और मैं खुद ही उनको सुहाग बढ़ाने वाला आशीर्वाद दूं।

महादेवजी ने शक्ति से ऐसा ही किया। थोड़ी देर में स्त्रियों का झुण्ड आया तो पार्वतीजी को चिन्ता हुई और महादेवजी के पास जाकर कहने लगी। प्रभु, में तो पहले ही वरदान दे चुकी, अब अपनी तरफ से सौभाग्य का वरदान दें, पार्वती के कहने से महादेवजी ने उन्हें सौभाग्य का वरदान दिया।
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