गणगौर व्रत व पूजा विधि
गणगौर तीज व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही स्नान कर लें। इस दिन माता पार्वती की पूजा गणगौर माता के रूप में की जाती है, एवं पूर्व में लगाएं गए ज्वारे की ईसर यानी शिव रूप में पूजा की जाती है। व्रती महिलाएं माता गणगौर को सुहाग की सभी सामग्रियां अखंड सौभाग्य की कामना से भेंट करें। पूजा में माता को सिंदूर अर्पित करें एवं उसी सिंदूर से हर दिन अपनी मांग भरनी चाहिए। अविवाहित कन्याएं भी गणगौर तीज का व्रत रखकर गौरी माता से अच्छे जीवन साथी की कामना पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करती है। इस व्रत में महिलाएं अपने पति को बिना बताएं ही व्रत रखती है।
जब कुलीन घरों स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान, पकवान लेकर पहुंची तो माता के पास उन्हें देने के लिये कुछ नहीं बचा, ऐसा देख भगवान शंकर ने पार्वती जी कहा, अपना सारा आशीर्वाद तो उन गरीब स्त्रियों को दे दिया अब इन्हें आप क्या देंगी? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा लेकर यहां आयी है उस पर ही इस विशेष सुहागरस के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी। तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्र स्त्रियों पर पड़े और वे धन्य हो गई। लेकिन लोभ-लालच और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने पहुंची महिलाओं को निराश लौटना पड़ा।
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