पुराणों में होलिका दहन और पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि होली के इस त्यौहार से धन—धान्य की देवी माता लक्ष्मी का भी खास संबंध है। दरअसल जानकारों के अनुसार होलिका दहन के दिन होली की पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी के साथ सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।
ऐसे करें होलिका दहन…
होलिका दहन में जल से अर्घ्य दें। शुभ मुहूर्त में होलिका में स्वयं या परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य से अग्नि प्रज्जवलित कराएं। आग में किसी भी फसल को सेंक लें और अगले दिन इसे सपरिवार ग्रहण करें। माना जाता है कि ऐसा करने से परिवार के सदस्यों को रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीं ये भी माना जाता है कि होलिका दहन के बाद उसी राख का टीका लगाने से बहुत सी व्याधियां दूर हो जाती हैं।
होलिका दहन के नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके मुख्यतः दो नियम हैं –
1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
होली 2021 की तारीख और शुभ मुहूर्त…
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 00:17 बजे
होलिका दहन तिथि- रविवार, मार्च 28, 2021 को
होलिका दहन मुहूर्त – 18:36:38 से 20:56:23 तक
अवधि – 02 घंटे 19 मिनट
भद्रा पुंछा :10:27:50 से 11:30:34 तक
भद्रा मुखा :11:30:34 से 13:15:08 तक
होली 29, मार्च को
होलिका दहन के दिन क्या नहीं करना चाहिए-
1. इस दिन कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
2. होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए।
3. होलिका दहन के समय सिर ढंककर ही पूजा करनी चाहिए।
4. नवविवाहित महिलाओं को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
5. सास-बहू को एक साथ मिलकर होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार, हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी।
शिवजी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
इसके अलावा प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।