भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया को संपूर्ण पूर्वी उत्तर भारत में कजरी तीज का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर सुहागिनें कजरी खेलने अपने मायके जाती हैं। ये महिलाएं नदी- तालाब आदि से मिट्टी लाकर उसका पिंड बनाती हैं और उसमें जौ के दाने बो देती हैं। रोज इसमें पानी डालने से पौधे निकल आते हैं। इन पौधों को कजरी वाले दिन लड़कियां अपने भाई तथा बुजुर्गो के कान पर रखकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस प्रक्रिया को जरई खोंसना कहते हैं।