इस माह में वैशाख
कृष्ण प्रतिपदा से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा तक जल चढ़ाने तथा जल पिलाने का सौभाग्य प्राप्त होता है। क्योंकि इस माह को युगादि, कल्पादि, सृष्टयादि युग के नाम से जाना जाता है। इसी माह में विशेष व्रत त्योहार एवं पर्वकाल आते हैं। आध्यात्मिक रूप से भगवान शिव को जल अर्पित और उनको संतृप्त करना ये सभी सात्विक कर्म मनुष्य जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं।
दान की परंपरा का वाहक वैशाख
शिव महापुराण के अनुसार परम योग के अधिष्ठात्र भगवान शिव वैशाख में अपनी योगिक क्रियाओं का आरंभ करते हुए अनुभूत होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में जल का कारक चंद्रमा है। यजुर्वेद में भी मन को चंद्रमा से जोड़ा गया है। इसी चंद्रमा को भगवान शिव ने जटा पर धारण किया हुआ है। इसका अर्थ यह है कि मानसिक, बौद्धिक एकाग्रता के लिए
ध्यान साधना आवश्यक है। चूंकि ध्यान पंचमहाभूतों में प्राणवायु से संबंधित है। प्राणवायु अग्नितत्त्व को संतुलित करती है।
वैशाख में भगवान शिव को या शिवलिंग पर जल चढ़ाने अथवा गलंतिका बंधन करने का (पानी की मटकी बांधना) विशेष पुण्य बताया जाता है। धर्मशास्त्र में इस माह का विशेष उल्लेख किया गया है जिसके अन्तर्गत चौराहों पर प्याऊ लगाना, छायादार वृक्ष की रक्षा करना, पशु पक्षी के खान-पान की विशेष व्यवस्था करवाना, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भगवान शिव को सतत जलधारा अर्पित करना तथा श्रद्धा से भगवान शिव को संतृप्त करना ये सभी सात्विक कर्म मनुष्य जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं। साथ ही जल चढ़ाने के माध्यम से पंचतत्त्वों को संतुलित करते हुए मानसिक तथा वैचारिक हिंसा से मुक्ति दिलाते हैं। इस दृष्टि से यह माह विशेष पुण्य फलदायी माना गया है।