कभी स्वयं को अकेला मत समझो। आगे बढ़ते रहो, लोगों की भीड़ स्वत: आ जाएगी। कभी खुद को अकेला और कमजोर मत समझो। सशक्त मन हर चीज को संभव बनाता है।
भगवान-इंसान
कोई भी व्यक्ति जो बोलता नहीं, सुनता है वह भगवान समान, जो कम बोलता है वह संत समान और जो सोच-समझ कर बोलता है वह इंसान है। जो बोलता ही रहता है वह राक्षस। भगवान हम सबके बारे में सोचते हैं, संत धर्म और समाज के बारे में सोचते हैं, इंसान सहयोग करने की सोचता है और राक्षस खुद को सुखी और दूसरों को दुखी करने की सोचता है। भगवान उपदेश, संत वात्सल्य, इंसान सहयोग और राक्षस दुख देते हैं।
कर्म-स्वभाव
जब हमारे मन में गुस्सा, लालच, अहंकार आदि आता है तो वह सबसे पहले हमें ही उद्धेलित करता है उल्टे कर्म करने के लिए और हम अपना विवेक, समझ, सहनशक्ति और चातुर्य आदि सब खो बैठते हैं। यह घटना ठीक उसी तरह होती है जैसे जब नदी में बाढ़ आ जाती है तो पानी नियंत्रण से बाहर होकर चारों ओर बहने लगता है, लेकिन जैसे ही पानी कम हो जाता है, शांत हो जाता है तो पुन: नदी के गर्भ से ही होकर बहता है।