दरअसल महावीर जयंती (Mahavir Jayanti 2020) जैन समुदाय का बड़ा पर्व है। जैन समुदाय के लोगों द्वारा महावीर जयंती को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को जैन समुदाय के लोग 24वें तीर्थंकर महावीर के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं।
इस दिन जैन मंदिरों में लोग पूजा करते हैं और शोभायात्रा भी निकालते हैं। लेकिन इस समय देशभर में कोरोना वायरस के चलते लॉक डाउन लगा हुआ है, लिहाजा लोग अपने घरों में ही यह पर्व मनाएंगे।
भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। भगवान महावीर ने तीस वर्ष की उम्र में वैभव और विलासिता पूर्ण जीवन को त्याग कर बारह वर्ष की मौन तपस्या के बाद ‘केवलज्ञान ‘ प्राप्त किया था । केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद तीस वर्ष तक महावीर ने जनकल्याण हेतु समाज में जमी कुरितियों और अंधविश्वासों की दूर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया
भगवान महावीर ने सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। जैन धर्म का समुदाय इस पर्व को बड़ी ही धूम-धाम से एक उत्सव की तरह मनाते हैं। स्वामी महावीर को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर माना जाता है।
भगवान महावीर का जीवन परिचय
भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। उनका जन्म वैशाली के कुंडलग्राम में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां हुआ था। लेकिन 30 वर्ष की आयु में अपने राजसी जीवन को त्यागकर वे सत्य की खोज में निकल पड़े और एक महात्मा बनकर दुनिया को अहिंसा परमो धर्म: का पाठ पढ़ाया। जैन पवित्र पुस्तकों के अनुसार, वैशाख के दसवें दिन वे पटना के निकट पावा नामक नगर में पहुंचे थे, जहां उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई और उनका नाम महावीर पड़ा।
भगवान महावीर ने सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। जैन धर्म का समुदाय इस पर्व को बड़ी ही धूम-धाम से एक उत्सव की तरह मनाते हैं। स्वामी महावीर को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर माना जाता है।
भगवान महावीर का जीवन परिचय
भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। उनका जन्म वैशाली के कुंडलग्राम में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां हुआ था। लेकिन 30 वर्ष की आयु में अपने राजसी जीवन को त्यागकर वे सत्य की खोज में निकल पड़े और एक महात्मा बनकर दुनिया को अहिंसा परमो धर्म: का पाठ पढ़ाया। जैन पवित्र पुस्तकों के अनुसार, वैशाख के दसवें दिन वे पटना के निकट पावा नामक नगर में पहुंचे थे, जहां उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई और उनका नाम महावीर पड़ा।
भगवान महावीर का जैन दर्शन
महावीर ने जैनियों को अपने अंदर त्याग, कठोर तपस्या और नैतिकता विकसित करने करने की सीख दी। जैन नैतिक रूप से अपने धर्म से बंधे हैं ताकि वे ऐसा जीवन व्यतीत करें जो अन्य किसी प्राणी को हानि न पहुंचाए।
महावीर ने जैनियों को अपने अंदर त्याग, कठोर तपस्या और नैतिकता विकसित करने करने की सीख दी। जैन नैतिक रूप से अपने धर्म से बंधे हैं ताकि वे ऐसा जीवन व्यतीत करें जो अन्य किसी प्राणी को हानि न पहुंचाए।
महावीर का विश्वास था कि सही विश्वास (सम्यक दर्शन), सही ज्ञान (सम्यक ज्ञान) और सही आचरण (सम्यक चरित) से कोई भी व्यक्ति स्वयं को जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कर सकता है। जैनियों को जीवन में पांच निग्रहों का पालन करने की आवश्यकता है –
1. अहिंसा (हिंसा का त्याग)
2. सत्य (सच्चाई)
3. अस्तेय (चोरी न करना)
4. अपरिग्रह (उपार्जन न करना)
5. ब्रह्मचर्य (जीवन में समय)
1. अहिंसा (हिंसा का त्याग)
2. सत्य (सच्चाई)
3. अस्तेय (चोरी न करना)
4. अपरिग्रह (उपार्जन न करना)
5. ब्रह्मचर्य (जीवन में समय)
भगवान महावीर के तीन सूत्र…
– भगवान महावीर हमें स्वयं से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं- स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? जो प्राणी स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेगा उसे सभी सुखों की प्राप्ति होगी।अपने आप पर विजय प्राप्त करना अनेकों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।
– भगवान महावीर हमें स्वयं से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं- स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? जो प्राणी स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेगा उसे सभी सुखों की प्राप्ति होगी।अपने आप पर विजय प्राप्त करना अनेकों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।
– आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है। असली शत्रु अपने भीतर रहते हैं वे शत्रु हैं- लालच, द्वेष, क्रोध, घमंड ,आसक्ति और नफरत इनसे मनुष्य को सदैव बचना चाहिए। – मनुष्य के दुखी होने की वजह खुद की गलतियां ही है, जो मनुष्य अपनी गलतियों पर काबू पा सकता है वहीं मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति भी कर सकता है। कठिन परिस्थितियों में भी मन को विचलित नहीं करना चाहिये।
भगवान महावीर के कुछ अनमोल वचन…
– मनुष्य के दुखी होने की वजह खुद की गलतियां ही हैं, जो मनुष्य अपनी गलतियों पर काबू पा सकता है वहीं मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति भी कर सकता है।
– मनुष्य के दुखी होने की वजह खुद की गलतियां ही हैं, जो मनुष्य अपनी गलतियों पर काबू पा सकता है वहीं मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति भी कर सकता है।
– आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है। असली शत्रु अपने भीतर रहते हैं। वे शत्रु हैं- लालच, द्वेष, क्रोध, घमंड और आसक्ति और नफरत। – महावीर हमें स्वयं से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं- स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।
– आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है। – आपात स्थिति में मन को डगमगाना नहीं चाहिए। – खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।