पंडितों व जानकारों का कहना है कि पुराणों के अनुसार इस दिन तीर्थ या गंगा में स्नान और दान करने से पुण्य व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा संक्रांति पर्व पर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उनके निमित्त तर्पण जरूर करना चाहिए। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है, साथ ही कई जगहों पर पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए खिचड़ी का दान भी किया जाता है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का प्रसाद भी बांटा जाता है। वहीं कई जगहों पर पतंगें उड़ाने की भी परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा पाठ का भी विशेष महत्व है।
दरअसल सनातन हिंदू धर्म में मकर संक्रांति एक प्रमुख पर्व है। भारत के विभिन्न इलाकों में इस त्यौहार को स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। हर वर्ष सामान्यत: मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। इस बार भी यानि 2021 में भी मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जानी है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।
ज्यादातर हिंदू त्यौहारों की गणना चंद्रमा पर आधारित पंचांग के द्वारा की जाती है, लेकिन मकर संक्रांति पर्व सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।
Makar Sankranti Shubh Muhurat : मकर संक्रान्ति 2021 मुहूर्त…
पुण्य काल मुहूर्त :08:03:07 से 12:30:00 तक
अवधि :4 घंटे 26 मिनट
महापुण्य काल मुहूर्त :08:03:07 से 08:27:07 तक
अवधि :0 घंटे 24 मिनट
संक्रांति पल :08:03:07
भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही नजरिये से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।
सूर्य देव के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही संक्रांति कहते हैं। एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है, हालांकि कुल 12 सूर्य संक्रांति होती हैं, परंतु इनमें से मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख महत्व रखते हैं।
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं, अर्थात् सूर्य देव जब बृहस्पति की राशि धनु से शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है, इसलिए इस पर्व को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि इस वक्त सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है और उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है।
मकर संक्रांति व्रत और पूजा की विधि : Puja vidhi of Makar Sankranti
मकर संक्रांति के दिन पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और उन्हें जल चढ़ाया जाता है। कई जगहों पर लोग सूर्य देव के लिए व्रत भी रखते हैं और अपनी श्रद्धानुसार दान करते हैं। इस दिन ऐसे करें पूजा-पाठ…
मकर संक्रांति के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के पानी में तिल मिलाकर नहाएं। इसके बाद लाल कपड़े पहनें और दाहिने हाथ में जल लेकर पूरे दिन बिना नमक खाए व्रत करने का संकल्प लें।
सुबह के समय सूर्य देव को तांबे के लोटे में शुद्ध जल चढ़ाएं। इस जल में लाल फूल, लाल चंदन, तिल और थोड़ा-सा गुड़ मिलाएं। सूर्य को जल चढ़ाते हुए तांबे के बर्तन में जल गिराए। तांबे के बर्तन में इकट्ठा किया जल मदार के पौधे में डाल दें। जल चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें – ऊं घृणि सूर्यआदित्याय नम:
इसके बाद नीचे दिए मंत्रों से सूर्य देव की स्तुति करें और सूर्य देवता को नमस्कार करें –
ऊं सूर्याय नम:।
ऊं आदित्याय नम:।
ऊं सप्तार्चिषे नम:।
ऊं सवित्रे नम:।
ऊं मार्तण्डाय नम:।
ऊं विष्णवे नम:।
ऊं भास्कराय नम:।
ऊं भानवे नम:।
ऊं मरिचये नम:।
इस दिन श्रीनारायण कवच, आदित्य हृदय स्तोत्र और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना बड़ा ही उत्तम माना गया है।
भगवान सूर्य की पूजा करने के बाद तिल, उड़द दाल, चावल, गुड़, सब्जी कुछ धन अगर संभव हो तो वस्त्र किसी ब्राह्मण को दान करें। इस दिन भगवान को तिल और खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए।
पौराणिक कथा
श्रीमद्भागवत और देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि उन्होंने सूर्य देव को शनिदेव की माता छाया और सूर्यदेव की दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज में भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।
पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की, लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे।
कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था, इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।
Makar Sankranti History : मकर संक्रांति का इतिहास –
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन की गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते है सागर में जा मिली थीं, इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का-सूचक भी माना जाता है। इस दिन से वातावरण में कुछ गर्मी आने लगती है और फिर बसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। कुछ अन्य कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं। इस वजह से भी गंगा स्नान का आज विशेष महत्व माना गया है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था।
मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होते हैं। उत्तरायण देवताओं का दिन है, मान्यताओं की मानें तो उत्तरायण में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। ज्ञात हो कि 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास होता है और खरमास में मांगलिक काम करने की मनाही होती है, लेकिन मकर संक्रांति के साथ ही शादी-ब्याह, मुंडन, जनेऊ और नामकरण जैसे शुभ काम की शुरुआत हो जाती हैं। धार्मिक महत्व के साथ ही इस पर्व को लोग प्रकृति से जोड़कर भी देखते हैं जहां रोशनी और ऊर्जा देने वाले भगवान सूर्य देवता की पूजा की जीती है।
मकर संक्रांति के मौके पर देश के कई शहरों में मेले लगते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत में बड़े मेलों का आयोजन होता है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु गंगा और अन्य पावन नदियों के तट पर स्नान और दान, धर्म करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि, जो मनुष्य मकर संक्रांति पर देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।