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मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

locationभोपालPublished: Sep 09, 2019 12:45:33 pm

Submitted by:

Shyam

Moharram Tazia 2019 – Festival Keeping Islam and Humanity alive – मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

साल 2019 में इस बार मुहर्रम (ताजिया) का पर्व 10 सितंबर दिन मंगलवार को है। इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत को मुहर्रम (Muharram) के तौर पर जाना जाता है। इससे तात्पर्य है कि मुहर्रम का महीना इस्लामी साल का पहला महीना होता है। मुस्लिम समुदायों में इस दिन का ख़ास महत्व होता है। इस्लाम के चार पवित्र महीनों में मुहर्रम के महीने को भी शामिल किया जाता है। जानें मुहर्रम मनाने कारण और महत्व।

मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

मोहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना

इस्लामी और ग्रेगोरियन कैलेंडर की तारीखें अलग-अलग होती है, इस्‍लामी कैलेंडर चंद्रमा पर तो ग्रेगोरियन कैलेंडर की तारीखें सूर्य के उदय और अस्त होने के आधार पर तय होती है। ऐसे में अगर आपको मुहर्रम के बारे में जानना है, तो सबसे पहले इसके इतिहास के पन्नों को देखना पड़ेगा, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफाओं का शासन था। मोहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है। इसे हिजरी संवत के नाम से भी जाना जाता है। हिजरी संवत का आगाज इसी महीने से होता है। अल्लाह के रसूल हजरत ने इस माह को ‘अल्लाह का महीना’ भी कहा है।

इसलिए मनाया जाता है मोहर्रम

एक वक्त ऐसा था जब बगदाद की राजधानी इराक में यजीद नाम क्रूर बादशाह का शासन हुआ करता था। लोग यजीद के नाम से खौफ खाते थे। साथ ही उसे इंसानियत का दुश्मन भी माना जाता था। ऐसे में मोहम्मद-ए-मस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने जालिम यजीद के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया था। इसके बाद गुस्सैल यजीद को यह गवारा न हुआ और उसने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर जुल्‍म किया और 10 मुहर्रम को उन्‍हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया।

मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्‍लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था। यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्‍नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया। हजरत हुसैन इराक के शहर कर्बला में यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे। जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था, वह मुहर्रम का ही महीना था। उस दिन 10 तारीख थी, जिसके बाद इस्‍लाम धर्म के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया। धीरे-धीरे मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में तब्दील हो गया।

मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

माहे मुहर्रम

मोहर्रम खुशियों का त्‍योहार नहीं बल्‍कि मातम और आंसू बहाने का महीना है। मुहर्रम माह के दौरान शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के 10 दिन काले कपड़े पहनते हैं। वहीं अगर बात करें मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय के लोगों की तो वह मुहर्रम के 10 दिन तक रोज़ा रखते हैं। मुहर्रम के दौरान काले कपड़े पहनने के पीछे हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करना है। इस दिन हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है।

मोहर्रम 2019 : इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

घरों-मस्जिदों में होती है इबादत

मुहर्रम के दौरान लोग कर्बला के युद्ध की कहानी सुनते हैं। संगीत, शोर-शराबे से दूर रहते हैं। किसी भी खुशहाल अवसरों पर नहीं जाते। इसके साथ ही जुलूस के दौरान वे नंगे पैर चलकर विलाप करते हैं। कुछ लोग तो अपने आपको खून निकलने तक कोड़े भी मारते हैं। वहीं कुछ लोग नाचकर कर्बला के युद्ध का अभिनय करते हैं। इस दिन मुसलमान घरों-मस्जिदों में इबादत करते हैं।

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