नागपंचमी का त्यौहार देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसे मनाने का ढंग कुछ अनूठा ही है
आधुनिक चकाचौंध और आकर्षण के अभाव के कारण सदियों परानी परम्पर गुड़िया पर्व पर इसे पीटने का प्रचलन धीरे धीरे समाप्त होता जा रहा है। मोबाइल,वाट्सएप, फेसबुक और इंटरनेट और बच्चों में टीवी पर कार्टून की बढती ललक ने लोगों को गुडिया त्यौहार के प्रति धीरे धीरे लोगों को पुरानी परम्पराओं से दूर कर दिया है। अब केवल रस्म अदायगी की जा रही है। गुड़िया पर्व क्यों मनाया जाता है आज इसके बारे मे बताने वाला शायद ही कोई मिलेगा। लोग रूढिवादी परम्परा का नाम देकर इससे दूर होते जा रहे हैं। नागपंचमी का त्यौहार देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसे मनाने का ढंग कुछ अनूठा ही है।
यहाँ नागपंचमी के दिन महिलाएं एवं लड़कियां घर के पुराने कपड़ों की गुड़िया बनाती हैं जिसे लड़के डंडों से पीटते हैं। उन्होंने बताया कि घर में बने पकवान एवं गेंहू और चना की कोहरी लेकर समीप के तालाब या नहर के तट पर जाती हैं। जहां विधि-विधान से पूजा कर भोग लगाती हैं। उसके बाद कपड़े की बनाई हुई गुडियों को तालाब या नहर मे प्रवाहित करती है, जिन्हे युवक डंडे से पीटते है। उन्होंने बताया कि पूर्वांचल के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाने वाला यह पर्व बीसवीं शताब्दी के इस नये युग में धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है, जो अब गांवों तक सीमित होकर रह गया है।
सिन्हा ने बताया कि गुड़िया पीटने वाली वाली नीम की लकडी को गोदी कहते हैं। यह गोदी बहन द्वारा तैयार की जाती है। बीच-बीच में इसके छिलके को हटाकर गोलाकर खाली जगहों पर रंग कर इसे रंगीन बनाया जाता था। यह प्राचीन परम्परा का अब हृास होता जा रहा है। उन्होंने बताया कि यह पर्व सावन महीने की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन घरों में पकवान, सिंवई समेत चना को उबालकर खाया जाता है।
गुड़िया पर्व क्यों मनाया जाता है इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण तो नहीं है, इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित है। सिन्हा ने बताया कि किंवदंतियों के अनुसार तक्षक नाग बहुत ही जहरीला था। इसमें इतनी शक्ति थी कि अपने विष से हरे-भरे वृक्ष को भी सूखा सकता था। एक बार महाराज परीक्षित को एक ऋषि ने शाप दे दिया कि तक्षक नाग तुम्हें डसेगा जिससे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। ऋषि के श्राप से तक्षक ने नियत समय पर परीक्षित को डस लिया। इससे उनकी मृत्यु हो गयी।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और तक्षक की चौथी पीढी में कन्या का विवाह राजा परीक्षित की चौथी पीढी में हुआ। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे किसी अन्य को भी नहीं बताने के लिए कहा। उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई। तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है।
वहीं, एक दूसरी कथा के मुताबिक, किसी नगर में एक भाई अपनी बहन के साथ रहता था। भाई, भगवान भोलेनाथ का भक्त था। वह प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ के मंदिर जाता था। वहाँ उसे एक नागदेवता के दर्शन होते थे। वह लड़का रोजाना उस नाग को दूध पिलाने लगा। धीरे- धीर दोनों में प्रेम बढऩे लगा। लड़के को देखते ही सांप अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाता था। एक बार सावन का महीना था। बहन, भाई के साथ मंदिर जाने के लिए तैयार हुई। नये गेहूं और चने की मीठी खीर, फल, फूल दलीय में लेकर भाई संग मंदिर गयी।
वहां रोज की तरह सांप अपनी मणि छोड़कर भाई के पैरों मे लिपट गया। बहन को लगा कि सांप भाई को डस रहा है। इस पर उसने सामान से भरे दलीय सांप पर दे मारी और उसे पीट- पीटकर मार डाला। भाई ने जब अपनी बहन को पूरी बात बताई तो वह रोने लगी और पश्चाताप करने लगी। लोगों ने कहा कि सांप देवता का रूप होते हैं इसलिए बहिन को दंड और पूजा जरूरी है। इसलिए बहन के रूप में गुड़िया को हर काल में दंड भुगतना पड़ेगा। तभी से गुडिया का यह पर्व मनाया जाने लगा।
एक अन्य कहानी के अनुसार एक राजा के गुडिय़ा नाम की एक लड़की थी। वह दूसरे राज्य के राजा के बेटे से प्रेम करती थी। दुश्मन राज्य के युवराज से प्रेम की बात गुडिय़ा के भाइयों को स्वीकार नहीं थी। उन्होंने गुडिय़ा को नगर के बीच चौराहे पर इतना पीटा कि उसकी मृत्य हो गयी। गुडिय़ा की मृत्य के बाद उसके भाईयों ने नगर में यह घोषणा की कि ऐसा अनैतिक कार्य कोई करेगा तो उसका हश्र भी ऐसा ही होगा। उस दिन के बाद से प्रतिवर्ष यह परम्परा चलती रही और चौराहों पर कपड़े की गुडिय़ा बनाकर पीटी जाने लगी।
रक्षाबंधन से पूर्व मनाए जाने वाले पर्व गुडिय़ा को नागपंचमी भी कहा जाता है। लोग मंदिरों में जाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है और नाग को दूध पिलाने की मान्यता को बखूबी निभाते है। मान्यता है कि शिव मंदिरों में काले सर्पों का वास होता है, इसलिये लोगों में दूध पिलाने का रिवाज है। महिलाएं घरों के दरवाजों पर गोबर से सर्प बनाकर खीर एवं दूध से भोग लगाती है। घर में पूजन करने के बाद लोग भोजन ग्रहण करते है, नागपंचमी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। इस दिन भगवान भोलेनाथ के साथ-साथ उनके गले का श्रृंगार नागदेवता की भी पूजा होती है।