सनातन धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां ये अवश्य समझ लें ही हर एकादशी का जैसा नाम होता है वह उसी के अनुरूप फल भी प्रदान करती है यानि कहीं न कहीं उसके नाम से जुड़ी रहती है। ऐसे में आने वाली पापमोदनी एकादशी के संबंध में मान्यता है कि यह पापों से मुक्त करने वाली एकादशी होती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसके महत्व के संबंध में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने द्वापरयुग में बताया है। मान्यता है कि पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने और कथा को सुनने से 1000 गौदान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही ये भी माना जाता है कि पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने से जाने-अंजाने में हुए पाप कर्मों से मुक्ति मिलने के साथ व्रती की मनचाही इच्छा भी पूरी होती है।
माना जाता है कि इस एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान (पंचामृत यानि ‘पांच अमृत’- दूध, दही, घी, शहद, शकर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है।) कराने से मनुष्य के द्वारा जाने-अंजाने में हुए पाप कर्मों के बुरे फल से मुक्ति मिलती है। अत: इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा अवश्य करनी चाहिए। साथ ही इस तिथि पर किसी की भी निंदा करने के साथ ही झूठ बोलने से भी बचना चाहिए। माना जाता है कि इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्ण चोरी, मदिरापान, अहिंसा और भ्रूणघात सहित कई प्रकार के घोर पापों के दोष से मुक्ति मिलती है।
पापमोचनी एकादशी 2022 शुभ मुहूर्त
पापमोचनी एकादशी तिथि की शुरुआत – रविवार, 27 मार्च, 2022 को 06:04 PM से
पापमोचनी एकादशी तिथि का समापन – सोमवार, 28 मार्च, 2022 को 04:15 PM तक
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
पापमोचनी एकादशी व्रत ( Papmochani Ekadashi vrat ) की कथा के अनुसार एक बार मेधावी ऋषि जो च्यवन ऋषि के पुत्र थे, वह घोर तपस्या में लीन थे। इंद्र भी उनकी तपस्या को देख घबरा गए। ऐसे में उनकी तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र ने मंजुघोषा नामक अप्सरा को उनके समीप भेजा। मंजुघोषा ने अपने नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया और मुनि मेधावी, मंजूघोषा अप्सरा पर मोहित हो गए और उसी अप्सरा के साथ रहने लगे। बहुत समय बीत जाने के बाद मंजूघोषा ने वापस जाने के लिए अनुमति मांगी, तब मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ, जिससे वे क्रोधित हो गए।
इस पर नाराज होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचिनी बनने का श्राप दे दिया। इसके बाद ऋषि के पैरों में अप्सरा मंजूघोषा गिर गई और उनसे श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। मंजूघोषा के बार-बार विनती करने पर ऋषि मेधावी ने उसे श्राप से मुक्ति के लिए बताया कि पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi ) का व्रत करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जाएगा और तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी।
अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- ”हे पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi ) का व्रत करो।” इस प्रकार पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi ) का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा को श्राप से मुक्ति मिल गई और मेधावी ऋषि के भी सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो गई।
ऐसे करें पापमोचनी एकादशी पर पूजन
व्रती को पापमोचनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निविवृत्त होकर भगवान श्री विष्णु का विधिवत षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि पापमोचनी एकादशी के दिन केवल फलाहारी व्रत करने से भी अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन सुबह, दोपहर और शाम को तीनों समय विधिपूर्वक भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। साथ ही इस दिन पूजा में ताजे तुलसी के पत्तों का प्रयोग करना चाहिए।
पापमोचनी एकादशी व्रत के ये हैं नियम
: पापमोचनी एकादशी के पूरे दिन भूलकर भी कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
: इसके साथ ही इस दिन मांस मदिरा, मसूर की दाल, चने व कद्दू की सब्जी एवं शहद का सेवन भी नहीं करना चाहिए। ना ही इस दिन पान खाना चाहिए।
: इस दिन भूमि पर शयन करते हुए कामवासना का त्याग करना चाहिए।
: इसके अलावा इस दिन किसी भी प्रकार का गलत काम नहीं करना चाहिए।
: इस दिन झूठ बोलने के अलावा बुराई, चुगली या क्रोध आदि भी नहीं करना चाहिए।
: इस दिन नमक, शक्कर, तेल और अन्न का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
Papmochani Ekadashi Vrat Vidhan : ऐसे करें यह व्रत-
: एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
: पूजा स्थल पर पीले कुशा आसन पर बैठकर घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु की प्रार्थना करें। कथा करें, हवन भी कर सकते हैं।
: भगवान श्री विष्णु जी के चतुर्भुज रूप का षोडशोपचार पूजा विधान सहित धुप, दीप, चंदन, ऋतुफल एवं नैवैद्य का भोग लगाएं ।
: पूजन के बाद मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।) का कम से कम 108, 501 या फिर 1100 बार जप करें ।
: इस दिन न तो किसी की निंदा न करें और न ही झूठ न बोलें, साथ ही किसी का दिल भी न दुखाएं।
: इस दिन नमक व शक्कर से बने पदार्थों का सेवन बिलकुल भी न करें । संभव हो तो दोनों समय निराहर ही रहे, सादे पानी में नींबू मिलाकर पी सकते हैं ।
: व्रत को अगले दिन द्वादशी तिथि में पारण के बाद ही खोलें।
: स्वयं भोजन करने से पहले किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर व्रत खोलने से व्रत पूर्ण माना जाता हैं ।