शनि अमावस्या : ऐसे शुरू हुई शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परम्परा, जानें अद्भूत रहस्य
– सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या एवं शनैश्चरी अमावस्या अगर एक ही दिन यानी शनिवार के दिन हो तो इस दिन सबसे पहले अपने पूर्वज पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर्म करने के बाद, 7 आटे के दीपक शनि देव के निमित्त दीपक जलाकर, नीले रंग के पुष्प, बेलपत्र एवं अक्षत से शनि देव का पूजन करना चाहिए।
– पितृ दोष से मुक्ति के लिए पित्रों के निमित्त 5 आटे दीपक पीपल के पुराने पेड़ के नीचे जलाने से एक साथ जीवन की अनेक पीड़ाएं दूर होने लगती है। साथ ही इस उपाय से पितरों की अतृप्त आत्माएं तृप्त होकर मुक्त हो जाती है।
– शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र “ॐ शं शनैश्चराय नम:”, या बीज मंत्र “ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:” मंत्र का 108 बार चंदन की माला से जप करना चाहिए।
– इस दिन सरसों के तेल, उड़द, काले तिल, कुलथी, गुड़, शनियंत्र और शनि से संबंधित पूजन सामग्री को शनिदेव को अर्पित करना चाहिए।
– इस दिन श्री शनि देव का तैलाभिषेक भी करना चाहिए।
– इस दिन शनि चालीसा, श्री हनुमान चालीसा या फिर बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए।
– जिनकी कुंडली या राशि पर शनि की साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव हो तो वे शनि अमावस्या के दिन शनिदेव का विधिवत पूजन जरूर करें।
– ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, वैशाखी शनि अमावस्या के दिन साढ़ेसाती एवं ढैया के निवारण के लिए जो भी उपाय करने से लाभ मिलता है।
– इस दिन शनि स्तोत्र का पाठ करने के बाद शनि देव की कोई भी वस्तु जैसे काला तिल, लोहे की वस्तु, काला चना, कंबल, नीला फूल दान करने से शनि साल भर कष्टों से बचाए रखते हैं।
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