मानव जीवन ग्रहों के संचरण से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। वर्ष २०१८ की बात करें तो शनि,
राहु और
केतु ? जैसे प्रभावी ग्रह इस वर्ष राशि परिवर्तित नहीं करेंगे लेकिन देवगुरु बृहस्पति तुला व वृश्चिक राशि में गतिशील रहेंगे। इसके अलावा संयोगवश मंगल इस वर्ष छह माह अपनी उच्च राशि मकर में भ्रमण करेगा। इसके कारण लगभग सभी राशियां पूर्ण और आंशिक रूप से प्रभावित रह सकती हैं।
शनिदेव वर्षभर धनु राशि में गतिशील रहेंगे। गोचर भ्रमणवश शनि जिस राशि पर होते हैं वहां से 3-7-10वीं राशि को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। धनु में गतिशील शनि की शुभ दृष्टि मिथुन, कन्या, कुंभ पर रहेगी।
राशि भ्रमण और परिवर्तन के कारण
गोचर भ्रमणवश ग्रहों के राशि परिवर्तन से प्राय: सभी राशियां प्रभावित होती हैं। मंगल, गुरु, शनि, राहु, केतु का राशियों पर भ्रमण मानव जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। शनि, राहु, केतु इस वर्ष राशि परिवर्तित नहीं करेंगे, वर्षभर इनका संचरण क्रमश: धनु, मिथुन, मकर राशि में ही रहेगा।
देवगुरु बृहस्पति, तुला व वृश्चिक राशि में गतिशील रहेंगे। मंगल का एक राशि पर भ्रमण काल डेढ़ माह का होता है। परन्तु संयोगवश इस वर्ष यह सर्वाधिक छह माह तक अपनी उच्च राशि मकर में भ्रमण करेगा। गोचर में ग्रहों द्वारा प्रदत्त शुभाशुभ फल जन्म कुंडली में उनकी स्थिति, योगायोग तथा दशान्र्तदशा के अधीन होता है।
जन्मकुंडली में संबंधित ग्रह उच्च, स्वग्रही या मित्र राशि में होकर शुभ भावों में बैठा हो तो गोचर में अशुभकारक होते हुए भी वह शुभ फल प्रदान करेगा। अशुभफल दूर करने के लिए ग्रहों से संबंधित व्रत, दान, जप करें।
राहु-केतु का प्रभावमानव जीवन को आकस्मिक रूप से प्रभावित करने वाले तमोग्रह राहु-केतु का गोचर वर्ष भर क्रमश: कर्क-मकर राशि में रहेगा। गोचर फलित के अनुसार राहु-केतु आपकी राशि से 3, 6, 10 एवं 11वें स्थान पर होते हैं तो शुभ फल देते हैं। अन्य स्थानों में इनका भ्रमण कष्टकारी होता है। वर्तमान में कर्क राशि में गतिशील राहु मेष, कर्क, सिंह और धनु राशि को तथा मकर राशिगत केतु मिथुन, तुला, मकर और कुंभ राशि के जातकों को अपने अशुभ प्रभाव से प्रभावित कर रहे हैं। जन्म कुंडली में राहु-केतु योगकारक हों तो गोचर में अशुभ होने पर भी शुभफल ही प्रदान करेंगे। अनिष्ट राहु-केतु की शांति के लिए इनके
मंत्र जप करें, प्रिय वस्तुओं का दान करें। राहु की शांति के लिए गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करें।
बृहस्पति का प्रभाव और राशियां
वर्षारंभ में जनवरी से 11 अक्टूबर तक देवगुरु बृहस्पति तुला राशि में संचरण करेंगे पुन: वर्षांत तक वृश्चिक राशि में गतिशील रहेंगे। तुला राशि में गतिशील गुरु की कृपादृष्टि मेष, मिथुन, कुंभ राशि पर एवं वृश्चिक राशि में गतिशील गुरु की शुभदृष्टि वृष, कर्क, मीन राशि पर रहेगी। गोचर फलित के अनुसार जब गुरु आपकी राशि से 1, 4, 8 अथवा 12 वें स्थान पर आते हैं तो कष्टदायक, हानिप्रद व व्यवसाय में असफलता प्रदान करते हैं।
वर्षारंभ में गुरु के तुला राशि में परिभ्रमण से यह तुला, कर्क, मीन तथा वृश्चिक राशि के लिए क्रमश: 1, 4, 8 व 12 वां होने के कारण अशुभ फलदायक रहेगा। अन्य राशि के जातकों के लिए गुरु गोचर में प्राय: शुभ फलदायक है। 11 अक्टूबर को देवगुरु बृहस्पति के वृश्चिक राशि में प्रवेश करते ही तुला, कर्क और मीन राशि के जातक तो गुरु के अशुभ प्रभाव से मुक्त हो जाएंगे, परन्तु मेष, सिंह, वृश्चिक और धनु राशि के लिए गुरु अशुभ कारक बनेगा। अन्य राशियों के लिए गुरु का प्रभाव शुभफलप्रद ही रहेगा।
शनि की साढ़ेसाती और ढ़ैया
गोचर भ्रमणवश जब शनि किसी जातक की राशि से बारहवें, पहले या दूसरे स्थान में हो तो यह शनि की साढ़ेसाती कहलाती है। वहीं चौथे या आठवें स्थान पर शनि संचार करे तब शनि की ढ़ैया कहलाती है। वर्षभर वृश्चिक, धनु और मकर राशि पर शनि की साढ़ेसाती तथा वृष और कन्या राशि पर शनि की ढ़ैया चलेगी। शनि की ढैय़ा और साढ़ेसाती से प्रभावित व्यक्तियों को मानसिक अशांति, धनाभाव, शारीरिक कष्ट, नौकरी व्यवसाय में परेशानी आदि कष्ट हो सकते हैं।
परन्तु ध्यान रखें जिनकी जन्म कुंडली में शनि श्रेष्ठ स्थान उच्च, स्वग्रही या मित्र राशि में हो और दशान्र्तदशा श्रेष्ठ चल रही हो तो उनके लिए शनि ढैय़ा और साढ़ेसाती काल में अशुभ न होकर शुभ फलदायक ही रहेगा। परन्तु चन्द्र और शनि अशुभ ग्रहों से युक्त होकर अशुभ भावों में बैठे हों तो ढ़ैया और साढ़ेसाती निष्ट फलप्रद होती है। शनि के अनिष्ट फल निवारणार्थ शनि की प्रिय वस्तुओं का यथा
शक्ति दान करें। न्याय पर चलें और कर्मनिष्ठ बनें।
मंगल का संचरण और राशियों का प्रभाव
आगामी 17 जनवरी को राशि परिवर्तित कर मंगल तुला से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा। 07 मार्च से धनु में संचरण करेगा। 2 मई से 05 नवम्बर तक मकर राशि में भ्रमण करेगा, वहीं 6 नवम्बर को कुंभ में और 23 दिसम्बर, 2018 से वर्षान्त तक मीन राशि में गतिशील रहेगा। इसी तरह 2 मई से 5 नवम्बर तक सबसे अधिक छह माह के लिए मंगल अपनी उच्च राशि मकर में गतिशील रहेगा।
आपकी राशि से 4, 8, 12वें स्थान पर मंगल अशुभकारक बनता है। अत: मकर राशि में उच्चगत मंगल तुला, मिथुन, कुंभ राशियों के लिए क्रमश: चौथा, आठवां, बारहवां होने के कारण ये राशियां मंगल के अशुभ प्रभाव से प्रभावित होंगी। मकर राशि में गतिशील मंगल की मेष व सिंह राशि पर शुभ दृष्टि के प्रभाव से इन राशियों के जातकों को मंगल शुभफल प्रदान करेगा, जबकि कर्क राशि पर मंगल की नीच दृष्टि रहेगी।
अशुभ मंगल के प्रभाव से व्यक्ति को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कर्ज मुक्ति के लिए स्कंद पुराण में वर्णित ‘ऋण मोचक मंगल स्तोत्र’ का पाठ करना लाभप्रद रहेगा।