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आमलकी एकादशी के दिन हरि-हर का पूजन अर्चन
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की यह एकादशी व्रती के जीवन में सुख और संपन्नता भी प्रदान करने वाली मानी जाता है। इस दिन पवित्र नगरी काशी में रंग भरी ग्यारस पर्व के आरंभ के साथ होलिका उत्सव शुरू हो जाता है।
फाल्गुन मास की इस एकादशी के दिन आमले के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है। इस एकादशी के दिन आंवले के पूजन के साथ ही माँ अन्नपूर्णा की सोने या चांदी की मूर्ति के दर्शन करने की धार्मिक परंपरा है। रंग भरी एकादशी पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस दिन आंवले का विशेष तरीके से प्रयोग किया जाता है। इससे अच्छी सेहत और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए इस एकादशी को “आमलकी एकादशी” भी कहा जाता है।
आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ के पूजन की विधि
प्रातःकाल सबसे आंवले के पेड़ में शुद्धजल का अर्घ्य अर्पित करें। आंमले के पेड़ के नीचे एक दीपक जलाकर फूल, धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करें। पूजन के बाद पेड़ की सत्ताइस, सात नौ या ग्यारह बार परिक्रमा करें। हाथ जोड़कर सौभाग्य प्राप्ति एवं उत्तम स्वास्थ्य की प्रार्थना करें। संभव हो तो इस दिन एक आंवले के पौधे का रोपण भी करें। इस दिन आंवले का दान, सेवन करने से गौ दान के बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन कनक धारा स्त्रोत का पाठ करने से दरिद्रता का नाश होने लगता है।
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विपत्तियों से बचने के लिए आमलकी एकादशी के दिन भगवान शिव का अभिषेक रंग गुलाल से करना चाहिए। ऐसा करने से वर्तमान एवं भविष्य में आने वाली समस्याओं से रक्षा होती है।
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