हजरत मोहम्मद सा. (सल्ल.) का फरमान है कि रोजा और सदका (दान-पुण्य) गुनाहों (पापों) को ऎसे मिटा देते हैं जैसे पानी आग को बुझा देता है
रोजा इफ्तार व सहरी का
वक्त मुफ्ती अहमद हसन साहब: इफ्तार – रविवार: 7.24, सहरी – सोमवार:
4.11
दारूल-उल रजविया: इफ्तार – रविवार: 7.28, सहरी – सोमवार: 4.05
शिया
इस्ना अशरी मस्लक: इफ्तार – रविवार: 7.36, सहरी – सोमवार:
3.50
मुफ्ती-ए-शहर
हजरत मोहम्मद सा. (सल्ल.) का फरमान है कि रोजा और
सदका (दान-पुण्य) गुनाहों (पापों) को ऎसे मिटा देते हैं जैसे पानी आग को बुझा देता
है। सदका अल्लाह के प्रति अति प्रिय अमल है और रमजान के महीने में इसकी विशेषता और
कीमत बहुत बढ़ जाती है। सदका करने से जान और माल की सुरक्षा और बरकत में बढ़ोतरी
होती है। सदका करने से केवल दूसरे ही लाभान्वित नहीं होते बल्कि स्वयं सदका करने
वाले को भी दिल का सुकून, तसल्ली एवं आत्मिक खुशी प्राप्त होती है। सदके का अर्थ
केवल पैसा खर्च करना ही नहीं है। किसी कमजोर व बुजुर्ग को सड़क पार करा देना, मजदूर
की मजदूरी समय पर खुशी-खुशी चुका देना, यात्रा के दौरान खड़े हुए बीमार, लाचार और
बुजुर्ग व्यक्ति को अपनी सीट पर बैठाना, मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव और बच्चों के
साथ प्यार-दुलार इत्यादि सभी अच्छे व भले काम सदका हैं।