पंडित सुनील शर्मा के अनुसार वराह भगवान विष्णु के तीसरे अवतार थे। वराह अवतार में भगवान विष्णु आधे-सुअर और आधे इंसान के रूप में अवतरित हुए थे। वराह भगवान का व्रत कल्याणकारी माना जाता है, मान्यता है कि जो भक्त वराह भगवान के नाम से व्रत रखते हैं, उनका सोया भाग्य जाग उठता है।
वहीं ये भी माना जाता है कि भगवान वराह की पूजा से धन, स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार ने बुराई पर विजय प्राप्त करते हुए हिरण्याक्ष का वध किया था। ऐसे में भक्त अपने जीवन की सारी बुराइयों को समाप्त करने के लिए वराह देव की पूजा करते हैं।
भगवान विष्णु ने इसलिए लिया वराह अवतार
कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी को दैत्य हिरण्याक्ष ने समुद्र में छिपा दिया था। इस पर सभी देवताओं ने पृथ्वी को ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। तो उन्होंने भगवान विष्णु से इसके लिए विनती की।
वहीं इससे पहले हिरण्याक्ष ने भगवान ब्रह्मा की साधना की और किसी से पराजित ना होने का वरदान प्राप्त कर लिया। इस पर वरुण देव ने उससे कहा की भगवान विष्णु संसार के संरक्षक हैं और वो उन्हें पराजित नही कर सकता। इतना सुनते ही हिरण्याक्ष भगवान विष्णु की खोज में निकला।
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इसी समय नारद मुनि से ये ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु ने बुराई समाप्त करने के लिए अवतार ले लिया है। इसी बीच भगवान वराह अपने दांत में रखकर पृथ्वी को वापस ले आए, ये देख हिरण्याक्ष क्रोध में भर गया और उसने भगवान वराह को ललकारा। लेकिन उसकी ओर देख एक मुस्कान के साथ वराह आगे बढ़ गए।
यहां उन्होंने पहले पृथ्वी की स्थापना की और फिर हिरण्याक्ष को युद्ध के लिए ललकारा। हिरण्याक्ष ने भगवान वराह पर गदा से प्रहार किया, लेकिन पलभर में गदा को छीन प्रभु ने उसे फेंक दिया, इसके बाद भीषण युद्ध में हिरण्याक्ष का भगवान वराह ने वध कर दिया और धरती से बुराई का सर्वनाश कर दिया। भगवान के हाथों मृत्यु भी मोक्ष होती है दैत्य हिरण्याक्ष सीधे बैकुंठ लोक गया।
भले ही यह पर्व मुख्यरूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर भारत के मथुरा में भी भगवान वराह का एक पुराना मंदिर है, जहां उनकी जयंती पर धूमधाम से ये पर्व मनाया जाता है।
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वहीं दूसरी ओर दक्षिण भारत स्थित आंध्रप्रदेश के तिरुमाला में भी भगवान वराह का एक पुराना मंदिर है, जिसे भू वराह स्वामी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां वराह जयंती पर विशेष रूप से पूजा की जाती है, जिसमें उन्हें घी, शहद, मक्खन, दूध, दही, नारियल के पानी से नहलाया जाता है।
वराह जयंती 2021 शुभ समय
: तृतीया तिथि शुरु- बृहस्पतिवार, 09 सितम्बर 2021 को रात 02 बजकर 33 मिनट से
: तृतीया तिथि की समाप्ति- शुक्रवार, 10 सितम्बर 2021 को रात 12:18 बजे तक
: शुभ मुहूर्त- 01.33 pm – 04.03 pm (09 सितम्बर 2021)
: वराह जयंती मनाने का दिन – बृहस्पतिवार,9 सितम्बर 2021
वराह जयंती की पूजा विधि
वराह जयंती के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर भगवान वराह की विधि विधान से पूजा की जाती है। वराह जयंती का व्रत किया जाता है, वहीं दिन भगवान वराह का कीर्तन व जाप भी किया जाता हैं। वराह जयंती पर एक पानी से भरा कलश वराह देव की मूर्ति के सामने रखते हैं और उस पर आम के पत्ते और नारियल रखे जाते हैं। इसके साथ ही श्रीमद्भगवतगीता का पाठ किया जाता है।
वहीं मंत्र (नमो भगवते वाराहरूपाय भूभुर्वः स्वः स्यातपते भूपतित्वं देह्योतदापय स्वाहा) का जाप लाल चंदन की माला से होता है। मान्यता है कि इस मंत्र का जाप से शहद या शक्कर से 108 बार हवन करने पर भगवान वराह प्रसन्न होकर मनोकामना पूर्ण करते है। माना जाता है कि भगवान वराह की पूजा से भक्तों के जीवन से बुराइयों का भी नाश होने के साथ ही उन्हें सुख समृद्धि प्राप्त होती है। बाद में किसी ब्राह्मण को इस कलश का दान कर दिया जाता है। इस दिन जरूरतमंदों को दान भी दिया जाता है।