वसंत पंचमी को सरस्वती पूजन क्यों ?
प्रथम तो वसंत पंचमी को सरस्वती का आविर्भाव दिवस माना जाता है। दूसरे, ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती को प्रसन्न होकर वरदान दिया था। इसलिए यह मां सरस्वती के जन्मोत्सव व सरस्वती पूजन का महत्ती पर्व है। इस दृष्टि से सरस्वती के प्राकट्य के पीछे जो कथा प्रचलित है। कहते हैं जब प्रजापिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की तो वे एक बार उसे देखने निकले, देखा तो सर्वत्र उदासी दिखी।
प्रथम तो वसंत पंचमी को सरस्वती का आविर्भाव दिवस माना जाता है। दूसरे, ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती को प्रसन्न होकर वरदान दिया था। इसलिए यह मां सरस्वती के जन्मोत्सव व सरस्वती पूजन का महत्ती पर्व है। इस दृष्टि से सरस्वती के प्राकट्य के पीछे जो कथा प्रचलित है। कहते हैं जब प्रजापिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की तो वे एक बार उसे देखने निकले, देखा तो सर्वत्र उदासी दिखी।
सन्नाटा व उदासीभरा वातावरण देखकर उन्हें लगा जैसे किसी के पास वाणी ही न हो। उस उदासी को दूर करने के प्रयोजन से उन्होंने कमंडल से चारों तरफ जल छिडक़ा। जलकण वृक्षों पर पड़े। वृक्षों से एक देवी प्रकट हुई जिनके चार हाथ थे। दो हाथों से वीणा साधे हुए थी। शेष दो हाथों में से एक हाथ में पुस्तक और दूसरे में माला थी। संसार की मूकता को दूर करने के लिए ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने को कहा। वीणा के मधुर नाद से सभी जीवों को वाणी (वाक्शक्ति) मिल गई। सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा।
इस दिन का है विशेष महत्त्व
इस दिन भगवान श्रीराम शबरी के आश्रम में पधारे थे तो वही वाल्मीकि को सरस्वती मंत्र , कालिदास द्वारा भगवती उपासना आदि इस दिन के महत्त्व को दर्शाते हैं। मत्स्य पुराण में सरस्वती विवाह के प्रसंग हैं तो दूसरी ओर संगीत की देवी की आराधना का महत्त्व भी कम नहीं है। इस दिन कवि, लेखक, गायक, वादक, साहित्यकार आदि से अपने कार्य आरम्भ करते हैं तो वही सैनिक अपने उपकरणों को पूजते हैं। सर्ग सृष्टि का इस दिन से आरम्भ होने के कारण यह संवत्सर का सिर और कल्प पर्व का पर्याय है। यह सारस्वतीय शक्तियों को पुनर्जागृत का दिन है।
इस दिन भगवान श्रीराम शबरी के आश्रम में पधारे थे तो वही वाल्मीकि को सरस्वती मंत्र , कालिदास द्वारा भगवती उपासना आदि इस दिन के महत्त्व को दर्शाते हैं। मत्स्य पुराण में सरस्वती विवाह के प्रसंग हैं तो दूसरी ओर संगीत की देवी की आराधना का महत्त्व भी कम नहीं है। इस दिन कवि, लेखक, गायक, वादक, साहित्यकार आदि से अपने कार्य आरम्भ करते हैं तो वही सैनिक अपने उपकरणों को पूजते हैं। सर्ग सृष्टि का इस दिन से आरम्भ होने के कारण यह संवत्सर का सिर और कल्प पर्व का पर्याय है। यह सारस्वतीय शक्तियों को पुनर्जागृत का दिन है।