scriptइसलिए नवरात्र में सफल होती है तंत्र-मंत्र-यंत्र साधनाएं, जानिए देवियों के दिव्य स्वरूप भी | Why goddess nav durga are worshipped in navratra 2018 | Patrika News

इसलिए नवरात्र में सफल होती है तंत्र-मंत्र-यंत्र साधनाएं, जानिए देवियों के दिव्य स्वरूप भी

Published: Mar 10, 2018 02:46:04 pm

नवरात्र में सभी भक्तजन मां भगवती को प्रसन्न कर उनसे मनचाहा आशीर्वाद पाने की कामना करते हैं।

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हर वर्ष चार नवरात्र आते हैं, दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त। इस बार नवरात्र 18 जनवरी से आ रहे हैं। नवरात्र में सभी भक्तजन मां भगवती को प्रसन्न कर उनसे मनचाहा आशीर्वाद पाने की कामना करते हैं। परन्तु इन नवरात्रों का मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक पहलू भी है जो हम नहीं जानते। यदि इनके बारे में भी जान लिया जाए तो इस दौरान की जाने वाली तंत्र-मंत्र साधनाओं में अवश्य ही सफलता मिलती है।
देवी की पूजा-अर्चना का काल है नवरात्र
नवरात्र अर्थात तांत्रिक-यांत्रिक-मांत्रिक साधना का सर्वोत्तम काल और पूरे नौ दिनों तक कन्यारूपिणी शक्ति-कुमारी माता दुर्गा का पूजन-अर्चन-वंदन और पाठ करना होता है। ‘दुर्गासप्तशती’ में देवी दुर्गा स्वयं कहती हैं कि ‘नवरात्र में जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ मेरी पूजा-अर्चना करेगा, वह सभी बाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य व संतान को प्राप्त करेगा।’ उसके सभी कष्ट भी दूर होंगे।
शुक्ल पक्ष में मंदिर-मठों और सिद्ध देवी स्थानों पर ‘दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।’ की शास्त्रीय ध्वनि सुनाई देने लगती है। ये मंत्र ? वे हैं जिन्हें सहस्राब्दियों से हमारी संस्कृति में भगवती से वर प्राप्ति के लिए जपा जाता है। दुर्गा पूजा, गुप्त नवरात्र और सरस्वती अनुष्ठान-शास्त्रों में ये तीन नामों का एक मात्र त्योहार होता है नवरात्र।
आराधना-वंदन का श्रेष्ठ समय
नवरात्र साधना व संयम के मनोभावों को प्रकट करने का पर्व-काल है। ‘अध्यात्मरामायण’ के अनुसार कभी माघ मास के शुक्ल पक्ष के इन्हीं नौ दिनों में मर्यादा पुरूषोत्म श्रीराम ने माता सीता के साथ अयोध्या में सरयू के तट पर ‘शक्ति पूजा’ की थी। अधर्म के थपेड़े खा रहे पांडवों ने महाभारत के धर्म युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए श्रीकृष्ण के आदेशानुसार इन्हीं नौ दिनों में ‘देवी पूजा’ की थी। बस, तब से आज तक एक सुदीर्घ इतिहास के रूप में भारत के अनेक अंचलों में नवरात्रों में माता दुर्गा का आराधना-वंदन होता है।
नवरात्र में पूज्य देवियों का दिव्य स्वरूप तथा उनके नाम
कूर्मपुराण में धरती पर देवी के बिम्ब के रूप में स्त्री का पूरा जीवन नवदुर्गा की मूर्ति में स्पष्ट रूप से बताया गया है। जन्म ग्रहण करती हुई कन्या ‘शैलपुत्री’, कौमार्य अवस्था तक ‘ब्रह्मचारिणी’ तथा विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल व पवित्र होने से ‘चंद्रघंटा’ कहलाती है। इसी तरह नए जीव को जन्म देने लिए गर्भधारण करने से ‘कूष्मांडा’ व संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री ‘स्कंदमाता’ के रूप में होती है।
संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री ‘कात्यायनी’ एवं पतिव्रता होने के कारण अपनी व पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से ‘कालरात्रि’ कहलाती है। सारे संसार का उपकार करने से ‘महागौरी’ तथा धरती को छोडक़र स्वर्ग प्रयाण करने से पहले पूरे परिवार व सारे संसार को सिद्धि व सफलता का आशीर्वाद देती नारी ‘सिद्धिदात्री’ के रूप में जानी जाती है। यही वजह है कि जो भी श्रद्धा-भक्ति से पूजा करता है उसे मन चाहा लाभ मिलता है।
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