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Budget 2019: देश की सड़कें ठीक कराने से लेकर घडिय़ां और जूतों तक, इस तरह आपकी जेब से पैसा निकालती है सरकार

Published: Jul 02, 2019 01:56:14 pm

Submitted by:

Saurabh Sharma

Budget 2019: देश की वित्त मंत्री निर्मला सीमारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) 5 जुलाई को संसद पटल पर बजट 2019 पेश करेंगी। जिसमें देश की नजरें उन टैक्सों और सेस पर होंगी, जो सरकार बजट में तय करती है।

Tax

Budget 2019: देश की सड़के ठीक कराने से लेकर घडिय़ां और जूतो तक, इस तरह आपकी जेब से पैसा निकालती है सरकार

नई दिल्ली। बजट ( budget 2019 ) और बजट में इनकम टैक्स के इतिहास ( History of Income Tax ) के बारे में पत्रिका ने आपको विस्तार से जानकारी दी थी। अब आपके सामने इसके आगे की कड़ी लेकर आए हैं। मौजूदा समय में आपको कौन कौन से टैक्स ( Tax ) दे रहे हैं। कितनी तरह के टैक्स होते हैं, टैक्स पर लगने वाले सेस ( Cess ) क्या होते हैं। देश में कितनी तरह के सेस होते हैं। इनको लगाने का आखिर मकसद क्या होता है। देश को टैक्स और सेस आखिर कमाई कितनी हो जाती है। ऐसे तमाम सवाल हैं जो भले ही देश की जनता के लिए इतने जरूरी ना हो, लेकिन जानकारी होना काफी जरूरी है। क्योंकि वो रुपया आपकी जेब से जाता है। आपके दूसरे मदों में लौटकर वापस आता है। आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर देश में कितनी तरह के टैक्स लगाए जाते हैं।

इनकम टैक्स यानी आयकर

Income Tax

आयकर यानी इनकम टैक्स के बारे में आपको हमने पूरी जानकारी दी थी। जो केंद्र सरकार किसी व्यक्ति की इनकम और उसकी प्रॉपर्टी पर लगाती है। इनकम टैक्स रेवेन्यू की बात करें तो केंद्र सरकार को वर्ष 2018-19 में 4,41,255 करोड़ रुपए हुआ। देश में टैक्स देने वाले लोगों की संख्या के बारे में तो 6,68,09,129 लोगों ने टैक्स दिया था। अगर बात 31 मार्च 2019 तक की करें तो इनकम टैक्स पोर्टल पर 8,45,14,539 लोगों ने अपने आपको रजिस्टर्ड किया है। यानी देश का 10 फीसदी से भी कम हिस्सा टैक्सपेयर है। अगर टॉप 5 स्टेट की करें तो महाराष्ट्र (10686533), गुजरात (6604451), उत्तर प्रदेश (6072493), तमिलनाडु (4537303) और वेस्ट बंगाल (4229356) के सबसे ज्यादा लोग टैक्स देते हैं।

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कस्टम ड्यूटी

Custom Duty

फाइनेंस मिनिस्ट्री का सबसे अहम डिपार्टमेंट सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम देश को काफी रेवेन्यु जेनरेट करके देता है। सरकार यह टैक्स एवं ड्यूटी देश में आयात और निर्यात होने वाले सामान पर लगाती है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में सरकार को कस्टम ड्यूटी से 1,35,242 करोड़ रुपए की कमाई थी। जबकि बजट में लक्ष्य सिर्फ 1.12 लाख करोड़ रुपए का ही रखा गया था।

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एक्साइज ड्यूटी

Excise Tax

यह केंद्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाला इनडायरेक्ट टैक्स है। यह टैक्स उन समानों पर लगाया जाता है जो भारत में भारत के लोगों के लिए बनाए जाते हैं। यह टैक्स सरकार सीधा सामान बनाने वाले से वसूलती है। जिसके बाद सामान बनाने वाला उस टैक्स को आम जनता से वस्तु की कीमत में जोड़कर लोगों से ले लेता है। जैसे सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर एक्साइज ड्यूटी लगाती है। यह एक्साइज ड्यूटी देश के लोग पेट्रोल और डीजल की कीमत में देते हैं। वहीं नेचुरल गैस, एविएशन टर्बाइन फ्यूल और टोबैको प्रोडक्ट्स पर भी एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती है। आंकड़ों की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2018-19 में 2,76,995 करोड़ एकत्र हुआ था।

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कॉरपोरेट टैक्स

Corporate Tax

कॉरपोरेट टैक्स देश की कंपनियों पर लगाया जाता है। यह किसी प्राइवेट, लिमिटेड, लिस्टेड कंपनियों पर लगाया जाता है। कंपनियों की जो भी आय होती है, कॉरपोरेट टैक्स उसपर ही लगता है। कॉरपोरेट टैक्स सरकार के हर साल के रेवेन्यू का एक अहम जरिया होता है। आंकड़ों की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2018-19 में कॉरपोरेट टैक्स के माध्यम से 5,63,745 करोड़ रुपए हासिल किए थे।

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आखिर क्या है सेस

Cess

अगर आप भी टैक्सपेयर हो चुके है या फिर होने वाले हैं तो आपको सेस के बारे में जानना काफी जरूरी है। क्योंकि यह टैक्स पर लगने वाला टैक्स यानी ( Tax on Tax ) होता है। इसे उपकर भी कहते हैं। यह टैक्सपेयर्स की कुल आय पर नहीं लगता। बल्कि सेस उस अमाउंट पर लगाया जाता है जितनी उसकी देनदारी बन रही है। आसान भाषा में समझने का प्रयास करें तो वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान लोगों ने अपनी आमदनी पर बन रही टैक्स देनदारी का 4 फीसदी अलग से एजुकेशन और हेल्थ सेस के रूप में चुकाया होगा। वैसे देश में एजुकेशन और हेल्थ सेस के अलावा और भी कई तरह के सेस हैं।

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रोड सेस और क्यों

Road Tax

मोदी सरकार ने 2018 के बजट में पेट्रोल और डीजल की कीमत से एक्साइज ड्यूटी और अन्य टैक्स में कटौती की थी। जिसके बदले में उन्होंने रोड सेस की घोषणा की। यह घोषणा इसलिए की गई थी कि सेस से मिलने वाले रेवेन्यू से देश की सड़कों को ठीक कराया जा सकेगा। नई सड़कों का निर्माण कराया जाएगा। सरकार ने बजट में पेट्रोल और डीजल पर 8 रुपए प्रति लीटर सेस लगाया था।

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क्रूड ऑयल सेस

Crude Oil Cess

यह सेस देश की ऑयल कंपनियों पर लगाया जाता है। इस सेस की शुरुआत भी मोदी सरकार में 2016 के बजट में अनाउंस हुई थी। उस 6000 रुपए प्रति टन 20 फीसदी तय हुआ था। 2018 में इसे घटाकर 4500 रुपए प्रति टन 20 फीसदी कर दिया गया। पेट्रोलियम कंपनियों ने इस बार वित्त मंत्री से डिमांड की है कि इस सेस को 20 फीसदी से 10 फीसदी कर दिया जाए।

सोशल वेलफेयर सरचार्ज

Social Welfare Cess
सोशल वेलफेयर सेस को 2018 के बजट के बाद लागू किया गया था। यह सेस दूसरे देशों से देश में आयातित वस्तुओं पर 10 फीसदी लगाया जाता है। देश में मोबाइल फोन, खिलौने, घडिय़ां, जूते, सोने और हीरों के गहने, ऑटो पाट्र्स, कॉस्मैटिक के सामान पर लगाया जाता है।
एजुकेशन और हेल्थ सेस

Education And Health Cess

वर्ष 2018 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए 4 फीसदी सेस का एलान किया किया था। यह सेस इनकम टैक्स और कॉर्पोरेशन टैक्स पर लगाया जा रहा है। इससे पहले एजुकेशन के लिए सरकार 3 फीसदी सेस वसूलती थी। सेस से जुटाई गई रकम सरकार ग्रामीण इलाकों में और गरीब परिवारों को स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा पर खर्च करती है। एक अनुमान के अनुसार इस सेस से सरकार को 11 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय प्राप्त हो रही है।

 

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