1. आर्थिक दुविधा
नोटबंदी के बाद करीब 15.44 लाख करोड़ की कीमत वाले 500 और 1000 के नोटों को सरकार ने बैन कर दिया था। बुधवार को जारी हुए आरबीआई रिपोर्ट के आंकड़ो के अनुसार, इसमें से करीब 15.28 लाख करोड़ यानि 98.96 फीसदी नोट बैंको में वापस आ चुके हैं। तो इसका मतलब है कि बाजार में मौजूद सारा काला धन बैंको में वापस आ चुका हैं। और अब काला धन के नाम पर देश मे कोई भी पैरेलल इकोनॉमी नहीं है।
2. आर्थिक ग्रोथ में कमी
दिसंबर माह के तिमाही की तुलना में भारत का आर्थिक ग्रोथ 7 फीसदी से गिरकर मार्च की तिमाही में 6.1 फीसदी पर पहुंच गया हैं। नोटबंदी के बाद यही पहला तिमाही था, जिसमें नोटबंदी का सबसे पहला असर देखने को मिला। पूरे वित्त वर्ष मे भी ग्रोथ रेट गिरकर 7.1 फीसदी पर आ गया। इसके साथ ही भारत ने दुनिया की सबसे उभरती अर्थव्यवस्था का दर्जा खो दिया हैं। जब औपचारिक अर्थव्यवस्था का यह हाल है तो आप सोच सकते है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का क्या हाल हुआ होगा जो सिर्फ नगदी पर चलते है।
3. बाजार में नगदी का अभी भी वर्चस्व
नोटबंदी के दौरान सरकार ने ये दावा किया था कि हम कैशलेस सोसइटी को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन नोटबंदी के बाद जैसे ही एटीएम में कैश सामान्य होने लगा, बाजार में नगदी का वर्चस्व फिर से बढऩे लगा। रिजर्व बैंक के अनुसार, डिजिटल ट्रांजैक्शन के जरिए पैसे ट्रांसफर करने का आंकड़ा फिर से नोटबंदी के पहले वाले आंकड़े के स्तर पर चला गया है।
4. बैंको को परेशानी
नोटबंदी के बाद का दो महीने में बैंको में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिला। लोगो द्वारा किया गया डिपॉजिट का बैलेंस बैंको पर भारी पड़ रहा है। नोटबंदी के दौरान लोन के पुर्नभुगतान से राहत ने बैंको के लिए खराब लोन की समस्या को और बढ़ा दिया। इस मामले मे पहले परेशान बैंको की और अधिक मार झेलनी पड़ती हैं।
5. गरीब कल्याण योजना
आपको गरीब कल्याण योजना तो याद ही होगा। इसमें काले धन की घोषण पर 50 फीसदी टैक्स और सरकार द्वारा घोषित धन का एक चौथाई हिस्सा चार महीनों के लिए रखा गया था। इस स्कीम के तहत केवल 5 हजार करोड़ ही रिकवर किया गया है। खुद सरकार इसे फ्लॉप मान चुकी है।