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निदेशक मंडल में ज्यादा महिलाओं के रहने से बेहतर होता है बैंकों का प्रदर्शन : आईएमएफ

locationनई दिल्लीPublished: Sep 20, 2018 05:04:39 pm

Submitted by:

Manoj Kumar

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने एक ब्लॉग में बैंकों के निदेशक मंडल में महिलाओं की कमी पर चिंता जताई है।

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निदेशक मंडल में ज्यादा महिलाओं के रहने से बेहतर होता है बैंकों का प्रदर्शन : आईएमएफ

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का कहना है कि दुनिया भर में वित्तीय तंत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी कम है और इसे बढ़ाने की जरूरत है। आईएमएफ ने कहा है कि जिन बैंकों के निदेशक मंडल में महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है उनका प्रदर्शन बेहतर होता है तथा स्थिरता ज्यादा रहती है। आईएमएफ ने एक ब्लॉग में यह बात कही है। इसमें कहा गया है कि बैंकों के शीर्ष नेतृत्व में लैंगिक विभेद से उनकी स्थिरता प्रभावित होती है। जिन बैंकों के निदेशक मंडल में महिलाएं ज्यादा होती हैं उनका पूंजी बफर ऊंचा होता है, गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) का फीसद कम रहता है और जोखिम से लड़ने की उसकी क्षमता ज्यादा होती है। बैंकों की स्थिरता और बैंकिंग नियामकों के निदेशक मंडलों में महिलाओं की मौजूदगी में भी यही संबंध पाया गया। उसने कहा है कि वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों के पद पर दो फीसदी से भी कम महिलाएं हैं। वहीं निदेशक मंडलों में उनका प्रतिनिधित्व 20 फीसदी से कम है।
इन चार कारणों से निदेशक मंडल में महिलाएं जरूरी

आईएमएफ का कहना है कि इसके चार संभावित कारण हो सकते हैं। पहला, जोखिम प्रबंधन में पुरुषों की तुलना में महिलाएं बेहतर होती हैं। दूसरा, भेदभाव पूर्ण नियुक्ति प्रथा के बावजूद जो महिलाएं शीर्ष पर हैं वे पुरुषों की तुलना में ज्यादा योग्य तथा अनुभवी होती हैं। तीसरा, निदेशक मंडल में ज्यादा महिलाओं के रहने से सोच में विविधता आती है जिससे निर्णय बेहतर होता है। चौथा, महिलाओं को ज्यादा आकर्षित करने वाले तथा उन्हें शीर्ष पदों के लिए चुनने वाले संस्थान पहले से ही सुप्रबंधित हैं। ब्लॉग में कहा गया है कि आईएमएफ के शोधपत्र के अनुसार निदेशक मंडल में सोच की विविधता के कारण बैंकों में स्थिरता आती है। साथ ही नियुक्ति प्रक्रिया में विविधता के कारण शीर्ष पर पहुंचने वाली महिलाएं अपने समकक्ष पुरुषों की तुलना में ज्यादा योग्य होती हैं।
वित्तीय स्थिरता के लिए महिलाओं का वित्तीय समावेशन जरूरी

आईएमएफ का कहना है कि इससे स्पष्ट है कि आर्थिक विकास तथा वित्तीय स्थिरता के लिए महिलाओं का वित्तीय समावेशन जरूरी है। उसने कहा है कि बैंकों तथा नियामक एजेंसियों में शीर्ष पदों तक महिलाओं की पहुंच सुनिश्चित करने का लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकता है, इस पर अभी ज्यादा शोध की जरूरत है। ब्लॉग में उसने बताया कि वित्तीय समावेशन के मामले में महिलाएं अभी भी काफी पीछे हैं। वर्ष 2016 में बैंकों में पैसे जमा करने और निकालने वालों में मात्र 40 फीसदी महिलाएं रहीं। इसमें ब्राजील में जहां उनका प्रतिशत 51 रहा, वहीं पाकिस्तान में यह आंकड़ा मात्र आठ फीसदी रहा। वित्तीय सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच ज्यादा होने से आर्थिक और सामाजिक लाभ होता है।

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