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Budget 2020: गन्ना किसानों व चीनी उद्योग को नीति में बदलाव के साथ विशेष पैकेज की दरकरार

locationनई दिल्लीPublished: Jan 31, 2020 02:24:07 pm

Submitted by:

Piyush Jayjan

किसानों की मांग है कि गन्ना मूल्य का तत्काल भुगतान हो वरना बकाया पर उन्हें ब्याज दिलाए। वहीं जर्जर चीनी मिल अपनी हालत सुधारने के लिए सरकार से फौरी राहत चाहते है।

Sugarcane farmers and sugar industry need special package with change in policy

Sugarcane farmers and sugar industry need special package with change in policy

नई दिल्ली। देश के गन्ना किसानों ( Sugarcane Farmers ) और चीनी उद्योग ( Sugar industry ) को आगामी बजट काफी आस है। किसानों को भरोसा है कि बकाया गन्ना मूल्य की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार ( Government ) कोई न कोई घोषणा जरूर करेगी। वहीं मिलें ( Sugar Mill ) भी गन्ना मूल्य नीति में बदलाव के साथ विशेष पैकेज की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

इस बात से सभी वाकिफ है कि किसानों ( Farmers ) को तय समय पर गन्ना राशि का नियमित भुगतान नहीं किया जाता। जिस वजह से खेती के आसरे जिंदगी व्यतीत करने वाले परिवारों की समस्या में और इजाफा हो जाता है। किसानों को गन्ना मूल्य का नियमित भुगतान नहीं हो पाता है। इसकी वजह ये है कि मिलें समय पर भुगतान ही नहीं करती है।

मौजूदा सत्र में यह धनराशि दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। गत सत्र का ही लगभग तीन हजार करोड़ रुपये का बकाया अभी मिलें चुकता नहीं कर पायी हैं। किसान मजदूर संगठनों ( Farmer Labor Organizations ) ने भी समय से भुगतान न होने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि गन्ने की खेती घाटे का सौदा बन रही है।

एक ओर सरकार किसानों की आय दोगुना करने का वादा पूरा करने की बात करती है। दूसरी ओर अभी भी गन्ना किसानों को उनकी समस्याओं के लिए हल नहीं मिल सकें है। ऐसे में किसानों की प्रमुख मांग ये है कि हर हाल में गन्ना मूल्य का भुगतान तय समय से ही किया जाए।

इस मसले पर मिल संचालकों का मानना है कि बिगड़े हालात में अधिक दिनों तक उद्योग को चलाना ही मुश्किल है। ऐसे में गन्ना की बकाया राशि का भुगतान करना आसान नहीं है। इस सत्र में 71 मिलों में गन्ना पेराई नहीं हो रही, उत्तर प्रदेश को छोड़ अन्य राज्यों की सभी मिलें नहीं चल पा रही हैं।

महाराष्ट्र की गत वर्ष चली 189 चीनी मिलों में से इस बार केवल 139 मिलें ही अभी चालू है। कर्नाटक में दो, गुजरात में एक और आंध्र प्रदेश में सात और तमिलनाडू में नौ मिलों में गन्ने की पेराई नहीं हो रही है। मिलों से चीनी की सप्लाई न होने से मिलों की हालात खराब होती जा रही है।

गत सत्र की ही तकरीबन 145 लाख टन चीनी मिलों के गोदाम में पड़ी है। श्रीलंका, मलेशिया, बांग्ला देश और इंडोनेशिया जैसे देशों में ही भारतीय चीनी की अच्छी खासी मांग है। लेकिन बाजार में चीनी के दाम स्थिर रहने व समय से सप्लाई न होने की वजह से मिलों की वित्तीय स्थिति बिगड़ रही है।

किसानों का बकाया गन्ना मूल्य पर ब्याज देने के फैसले पर मिल संचालकों का कहना है कि 15 फीसद ब्याज देने की व्यवस्था गलत है। यहीं वजह है कि बैंक भी मिलों की मदद से हाथ खींचने लगे है। ऐसे में चीनी उद्योग की बेहतरी के लिए गन्ना मूल्य निर्धारण व्यवस्था ठीक हो। इसके साथ ही एथनॉल नीति ( Ethanol policy ) में सुधार हो।

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