scriptVIDEO: जब तक मन से ‘मैं’ का भाव नहीं मिटेगा, तब तक चिंता, अशांति मिटने वाली नहीं: कृष्णाप्रिया | Bhagwat Katha Krishnapriya told the meaning of Human life | Patrika News

VIDEO: जब तक मन से ‘मैं’ का भाव नहीं मिटेगा, तब तक चिंता, अशांति मिटने वाली नहीं: कृष्णाप्रिया

locationफिरोजाबादPublished: Sep 27, 2019 09:17:54 am

— फिरोजाबाद के टूंडला नगर में चल रही भागवत कथा में दीदी कृष्णाप्रिया ने बताया जीवन का मरहम।

Krishnapriya

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फिरोजाबाद। जीवन क्या है और यह क्यों मिला है। व्यक्ति के मन में इसी प्रकार के तमाम सवाल चलते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य क्या नहीं करता फिर भी अपने पथ से भटक कर पाप के मार्ग पर चला जाता है। जीवन में सबसे बड़ा कष्ट देने वाला मात्र एक शब्द ‘मैं’ है। जब तक मन से इसे नहीं निकाला जाएगा जब तक इस संसार के मरहम का बोध नहीं होगा।
मैं करने वाला हूँ ! जब तक यह भाव रहेगा आपकी चिंता अशांति मिटने वाली नही है। मैं करने वाला हूँ ! इस भाव में ही आपका अहंकार है और जहां अहंकार है वहां मोह है, क्रोध है, विषमता है, दुख है, द्वेष और अशांति है। जब वह परमात्मा करने वाला है। यह भाव आता है। तब आपका अहंकार हट जाता है और अहंकार हटते ही सब उलझने अशांति, पाप, पुण्य, शोक, मोह, भय, क्रोध सब हट जाता है। सिर्फ बचता है तो सहज, आनन्द, प्रेम जो आपमें से झरने लगता है। झरने के जैसे, बरसने लगता है। बादलों के जैसे, बिखरने लगता है। फूलों की सुगन्ध के जैसे यही आपकी वास्तविकता है।
हमारा अहंकार ही हमारी इस वास्तविकता से हमें दूर करता है। जब तक ‘मैं’ है, तब तक ही ‘तू’ भी है और जब तक ‘मैं’ और ‘तू’ है। तब तक मोह क्रोध द्वेष तुलना हममें भरी रहेगी जो हमे अशांत और परमात्मा से अलग करती है। परमात्मा से मिलन का रास्ता केवल एक ही है वह है जो कुछ है वह तू है। मैं तेरे सामने कुछ भी नहीं। यदि जीवन का आनंद लेना है तो अपने आप को उस ईश्वर के हाथ में देना होगा, जो सुख और दुख दोनों देने वाला है। हमारे सोचने से कुछ होने वाला नहीं है।

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