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कभी साइकिल से फेरी लगाकर बेचते थे कुल्फी, आज दुकान पर लगती है लाइन

locationफिरोजाबादPublished: Jul 19, 2017 03:42:00 pm

इस जिले की चूड़ी ही नहीं कुल्फी भी है मशहूर, जानिए खासियत

  Hiralal Ki Kulfi

Hiralal Ki Kulfi

फिरोजाबाद। टूंडला में मिलने वाली हीरालाल की कुल्फी न केवल स्वाद के मामले में बल्कि सेहत के मामले में भी नंबर वन है। यही कारण है कि सर्दी हो या फिर गर्मी ही हीरालाल की कुल्फी खाने के लिए यहां लाइन लगी रहती है।

दिल्ली और लखनऊ तक जाती है कुल्फी

हीरालाल की कुल्फी जिलेभर में ही नहीं बल्कि दिल्ली और लखनऊ तक जाती है। कुल्फी के शौकीन लोग पैकिंग कराकर कुल्फी ले जाते हैं। यहां जितनी अधिक दूर कुल्फी ले जानी है वैसी ही पैकिंग की जाती है। कुल्फी के अलावा पैकिंग का चार्ज भी अतिरिक्त लगता है। दुकानदार द्वारा कुल्फी न घुलने की गारंटी भी दी जाती है। यही कारण है कि लोग कुल्फी पैक कराकर घर और रिश्तेदारों के यहां ले जाते हैं।

गांव-गांव जाते थे कुल्फी बेचने
दुकानदार राजेश कुशवाह का कहना है कि करीब 25 वर्ष पूर्व उनके पिता ने कुल्फी बेचने का काम शुरू किया था। तब वो साइकिल पर पेटी बांधकर गांव-गांव कुल्फी बेचने जाते थे। धीरे-धीरे लोगों को कुल्फी में स्वाद आने लगा। राजेश के बड़े भाई हीरालाल ने भी कुल्फी बेचना शुरू कर दिया। कुल्फी को ब्रांड देने के लिए हीरालाल की कुल्फी नाम दिया गया। उसके बाद टूंडला के बस स्टैंड पर एक ठेल पर कुल्फी बेचने का काम शुरू हुआ। उसी ठेले से कुल्फी बेचते हुए आज हीरालाल पक्की दुकानों में कुल्फी बेचते हैं।

मेवा और रवड़ी से तैयार होती है कुल्फी
दुकानदार ने बताया कि वो कुल्फी को रबड़ी और मेवा से बनाते हैं। उनके पास कई प्रकार की कुल्फी हैं। जिनमें 10 रुपए से लेकर 30 रुपए तक की कुल्फी हैं। 30 रुपए की कुल्फी में रबड़ी के साथ ही काजू, बादाम भी डाले जाते हैं। वर्तमान में हीरालाल की दुकान पर कुल्फी बेचने और तैयार करने के लिए करीब दो दर्जन से अधिक लोग काम करते हैं। महंगाई बढ़ने के साथ कुल्फी के रेट में भी वृद्धि की गई लेकिन क्वालिटी से कोई समझौता नहीं किया। स्वाद और सेहत दोनों होने के कारण आज शादियों में भी हीरालाल की कुल्फी की डिमांड रहती है।

कई जिलों में है फ्रेंचाइजी

हीरालाल कुल्फी की ब्रांच टूंडला में ही नहीं बल्कि आगरा, मथुरा, एटा और कासगंज में भी है। गांव और नगर तक कुल्फी पहुंचाने के लिए कई वाहन लगा रहे हैं। जो कुल्फी हीरालाल लिखकर गांव-गांव तक जाकर कुल्फी पहुंचाते हैं।

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