सैफई परिवार में होगा घमासान
फिरोजाबाद लोकसभा का इतिहास वैसे तो अधिक पुराना नहीं है। पहली बार वर्ष 1957 में यहां लोकसभा का चुनाव हुआ। जिसमें निर्दलीय बृजराज सिंह ने चुनाव लड़ा था। इस सीट से चार बार सपा और तीन बार भाजपा के सांसद समेत कांग्रेस और निर्दलीय भी जीते हैं। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ कि एक ही परिवार के दो लोग चुनाव मैदान में आमने—सामने हों। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में चाचा शिवपाल यादव ने अपने भतीजे अक्षय यादव के लिए प्रचार किया आज वही भतीजे को टक्कर देने के लिए सामने खड़े हैं।
फिरोजाबाद लोकसभा का इतिहास वैसे तो अधिक पुराना नहीं है। पहली बार वर्ष 1957 में यहां लोकसभा का चुनाव हुआ। जिसमें निर्दलीय बृजराज सिंह ने चुनाव लड़ा था। इस सीट से चार बार सपा और तीन बार भाजपा के सांसद समेत कांग्रेस और निर्दलीय भी जीते हैं। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ कि एक ही परिवार के दो लोग चुनाव मैदान में आमने—सामने हों। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में चाचा शिवपाल यादव ने अपने भतीजे अक्षय यादव के लिए प्रचार किया आज वही भतीजे को टक्कर देने के लिए सामने खड़े हैं।
कांग्रेस ने भी नहीं छोड़ी सीट
इस लोकसभा पर कांग्रेस हमेशा से अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारती रही है लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब गठबंधन प्रत्याशी अक्षय यादव के समर्थन में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतारने से इंकार किया है। ऐसे में गठबंधन प्रत्याशी को टक्कर देने के लिए प्रसपा प्रत्याशी शिवपाल सिंह यादव ने पीस पार्टी से गठबंधन कर मुस्लिम वोटरों पर पासा फेंकने का काम किया है। ऐसे में चाचा—भतीजे के बीच कड़ी टक्कर होना तय है।
इस लोकसभा पर कांग्रेस हमेशा से अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारती रही है लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब गठबंधन प्रत्याशी अक्षय यादव के समर्थन में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतारने से इंकार किया है। ऐसे में गठबंधन प्रत्याशी को टक्कर देने के लिए प्रसपा प्रत्याशी शिवपाल सिंह यादव ने पीस पार्टी से गठबंधन कर मुस्लिम वोटरों पर पासा फेंकने का काम किया है। ऐसे में चाचा—भतीजे के बीच कड़ी टक्कर होना तय है।
भाजपा घोषित नहीं कर सकी प्रत्याशी
मतदान होने में अब एक महीना भी नहीं बचा है और भाजपा अभी तक प्रत्याशी भी घोषित नहीं कर सकी है। ऐसे में देखना होगा कि लोकसभा चुनाव के परिणाम से किसे खुशी मिलेगी और किसे गम। हालांकि यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन एक बात तय है कि चाचा—भतीजे की इस टक्कर को देखने के लिए सभी राजनैतिक दलों की निगाह इस ओर टिकी हुई हैं।
मतदान होने में अब एक महीना भी नहीं बचा है और भाजपा अभी तक प्रत्याशी भी घोषित नहीं कर सकी है। ऐसे में देखना होगा कि लोकसभा चुनाव के परिणाम से किसे खुशी मिलेगी और किसे गम। हालांकि यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन एक बात तय है कि चाचा—भतीजे की इस टक्कर को देखने के लिए सभी राजनैतिक दलों की निगाह इस ओर टिकी हुई हैं।