इस तरह देखा जाए तो चिट्ठी लोगों के बीच भावात्मक जुड़ाव को मजबूत करने का काम करती थी। लेकिन आज विकास की दौड़ ने चिट्ठी के दौर को मानो भुला सा दिया है। 7 दिसंबर को letter writing day है। इस मौके पर चिट्ठी की यादों को जेहन में तरोताजा करने व आज की पीढ़ी को इसकी उपयोगिता समझाने के लिए पत्रिका ने ‘किस्से चिट्ठी के’ नाम से एक विशेष सीरीज की शुरुआत की है। इसमें कुछ बुजुर्गों के माध्यम से हम चिट्ठी से जुड़े रोचक किस्सों को सुनेंगे।
गमी के पत्र में काट देते थे चिट्ठी का कोना
फिरोजाबाद की रहने वाली प्रेमलता बताती हैं कि उनके समय में मोबाइल या टेलीफोन नहीं होते थे। किसी भी सूचना के आदान प्रदान के लिए पोस्टकार्ड, अंतरदेशी, लिफाफा के जरिए सूचना भेजी जाती थीं। उन्हें भी लिखने का एक तरीका निर्धारित होता था। इसके अलावा जब किसी गमी की सूचना भेजी जाती थी तो पोस्टकार्ड का कोना काट दिया जाता था। ऐसे में पत्र देखकर ही समझ में आ जाता था कि कोई दुखद समाचार है।
फिरोजाबाद की रहने वाली प्रेमलता बताती हैं कि उनके समय में मोबाइल या टेलीफोन नहीं होते थे। किसी भी सूचना के आदान प्रदान के लिए पोस्टकार्ड, अंतरदेशी, लिफाफा के जरिए सूचना भेजी जाती थीं। उन्हें भी लिखने का एक तरीका निर्धारित होता था। इसके अलावा जब किसी गमी की सूचना भेजी जाती थी तो पोस्टकार्ड का कोना काट दिया जाता था। ऐसे में पत्र देखकर ही समझ में आ जाता था कि कोई दुखद समाचार है।
शुभ कार्य के लिए अंतरदेशी लिफाफे का प्रयोग
शुभ कार्य के लिए अंतरदेशी लिफाफे का प्रयोग किया जाता था। पोस्टकार्ड पर सूचनाएं सार्वजनिक होने का खतरा रहता था। ऐसे में जो लोग पोस्टकार्ड भेजते थे उनके लिए कहा जाता था, ‘पोस्टकार्ड पर लिखा पत्र यह किससे सीखा तुमने, अंतरदेशी और लिफाफे दिए आपको क्यों हमने। पोस्टकार्ड पर लिखा पत्र तुमने बड़ी नादानी की, घरवालों को पड़ गई मालूम, जूतों की मेहमानी हुई।’ गुप्त तरीके से दिए जाने वाले प्रेम पत्र चोरी छिपे दिए जाते थे, जिससे घरवालों को जानकारी न हो सके।
शुभ कार्य के लिए अंतरदेशी लिफाफे का प्रयोग किया जाता था। पोस्टकार्ड पर सूचनाएं सार्वजनिक होने का खतरा रहता था। ऐसे में जो लोग पोस्टकार्ड भेजते थे उनके लिए कहा जाता था, ‘पोस्टकार्ड पर लिखा पत्र यह किससे सीखा तुमने, अंतरदेशी और लिफाफे दिए आपको क्यों हमने। पोस्टकार्ड पर लिखा पत्र तुमने बड़ी नादानी की, घरवालों को पड़ गई मालूम, जूतों की मेहमानी हुई।’ गुप्त तरीके से दिए जाने वाले प्रेम पत्र चोरी छिपे दिए जाते थे, जिससे घरवालों को जानकारी न हो सके।
आज की पीढ़ी को नहीं मालूम इनकी अहमियत
प्रेमलता कहती हैं कि पहले चिट्ठी सूचनाओं के आदान प्रदान का एकमात्र जरिया थी। लोग खासतौर पर इसका इंतजार करते थे। पोस्टमैन की एक आवाज पर दौड़कर पहुंचते थे। लंबे समय तक किसी का हालचाल न मिलने पर पत्र भेजकर खैरियत पूछते थे। लेकिन आजकल के बच्चों से पोस्टकार्ड या अंतरदेशी की बात भी कर ली जाए तो वे सोच में पड़ जाते हैं कि ये होता क्या है। आजकल के बच्चे पत्र लिखना जानते ही नहीं। किसी से अगर बात करनी हो तो सिर्फ एक नंबर डायल करने की जरूरत है। व्हाट्सएप और मैसेज के चलन ने आपसी रिश्तों की मिठास को काफी कम कर दिया है। बेशक पत्रों का वो दौर दोबारा नहीं लाया जा सकता, लेकिन इसे इतिहास में दर्ज कराकर बच्चों को इसका महत्व तो समझाना ही चाहिए क्योंकि ये चिठ्ठियां सिर्फ कागज़ पर लिखे कुछ शब्द नहीं, बल्कि हमारी विरासत का हिस्सा हैं।
प्रेमलता कहती हैं कि पहले चिट्ठी सूचनाओं के आदान प्रदान का एकमात्र जरिया थी। लोग खासतौर पर इसका इंतजार करते थे। पोस्टमैन की एक आवाज पर दौड़कर पहुंचते थे। लंबे समय तक किसी का हालचाल न मिलने पर पत्र भेजकर खैरियत पूछते थे। लेकिन आजकल के बच्चों से पोस्टकार्ड या अंतरदेशी की बात भी कर ली जाए तो वे सोच में पड़ जाते हैं कि ये होता क्या है। आजकल के बच्चे पत्र लिखना जानते ही नहीं। किसी से अगर बात करनी हो तो सिर्फ एक नंबर डायल करने की जरूरत है। व्हाट्सएप और मैसेज के चलन ने आपसी रिश्तों की मिठास को काफी कम कर दिया है। बेशक पत्रों का वो दौर दोबारा नहीं लाया जा सकता, लेकिन इसे इतिहास में दर्ज कराकर बच्चों को इसका महत्व तो समझाना ही चाहिए क्योंकि ये चिठ्ठियां सिर्फ कागज़ पर लिखे कुछ शब्द नहीं, बल्कि हमारी विरासत का हिस्सा हैं।