नॉर्थ सेंट्रल रेलवे मैंस यूनियन के शाखा सचिव बलराम ने रेलवे के इतिहास को लेकर कहा कि भारतीय रेल का पहला अध्याय 16 अप्रैल 1853 में लिखा गया। जब देश की पहली यात्री ट्रेन बोरी बंदर से ठाणे के लिये चलाई गई थी। हिन्दुस्तान के बंटवारे में 40 प्रतिशत रेल नेटवर्क पाकिस्तान में चला गया। 1947 में अस्त व्यस्त, खस्ताहाल पड़ा रेलवे को जब भारत सरकार ने संभाला तब भारत के पास केवल 42 भाप संचालित ट्रेन और 32 रेलवे लाइन थीं।
शाखा के जयकियान अजवानी ने कहा कि जिन लोगो को लगता है कि रेलवे घाटे में है या रेलवे में विकास नही हुआ। उन लोगो को जानकारी होनी चाहिए कि हिंदुस्तान में विश्व का रेल नेटवर्क के मामले में चौथा स्थान है। हमारे पास 20,000 से अधिक यात्री ट्रेन और 9200 से अधिक मालगाड़ी हैं। आज हमारे पास 121407 किलोमीटर का electrified रूट है। जिसमें से 33 प्रतिशत रूट डबल/ ट्रिपल लाइन है। भारतीय रेल विश्व की सबसे बड़ी माल वाहक और सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली है। आज भारतीय रेल में कर्मचारियों की संख्या 19 लाख के लगभग है।
इतने सालों में रेलवे का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया है और यह सरकार इसे प्राइवेटाइजेशन के नाम पर बेचना चाहती है। देश को सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली रेलवे ही जब प्राइवेट हो जायेगी तब रोजगार कहां से पैदा होगा। अब हम सबको आगे आना होगा, सड़को पर उतरना होगा, रेलवे को बचाना होगा। कपूरथाला रेल कोच फैक्ट्री के कर्मचारियों ने इसकी सुरुआत कर दी है। डीके दीक्षित, दीपक शर्मा, केपी सिंह, सतीश कुमार, विनोद यादव, सरदार यादव, खेमचन्द्र, संजीव यादव, पंकज मंडल, प्रदीप कुमार, अशोक कुमार कर्दम ने भी इसका विरोध किया।