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पैडमैन देखने के बाद भी इस जिले में नहीं आ रही जागरूकता, स्वच्छ भारत मिशन के तहत खुले इस केन्द्र का यह है हाल, देखें वीडियो

locationफिरोजाबादPublished: Mar 06, 2019 07:11:54 pm

Submitted by:

arun rawat

— अनदेखी के चलते गति नहीं पकड़ पा रहा सेनेटरी नैपकिन प्लांट, अधिकारियों की उदासीनता के चलते कमरे में भरे पड़े हैं लाखों पैड।

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फिरोजाबाद। अधिकारियों की उदासीनता के चलते फीरोजाबाद जिले का एक मात्र सैनेटरी नैपकिन बदहाली की कगार पर है। चार साल पहले शुरू हुआ नैपकिन प्लांट आज अपने खर्चे भी पूरे नहीं कर पा रहा है। लाखों पैड कमरे में भरे पड़े हैं, जिनके खरीददार नहीं मिल रहे हैं।
वर्ष 2015 में खुला था प्लांट
अक्टूबर वर्ष 2015 में तत्कालीन जिला अधिकारी विजय किरन आनंद ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत टूंडला में सैनेटरी नैपकिन प्लांट की स्थापना कराई थी। इसका उद्देश्य महिलाओं को होने वाली माहवारी के दौरान बीमारियों से बचाना था। इसके लिए करीब साढ़े तीन लाख रुपए की लागत से मशीन खरीदकर इसमें लगाई गईं। नैपकिन तैयार होने के बाद उन्हें सरकारी अस्पतालों, स्कूलों और गांवों में बेचा जाता था।
लगवाई नई मशीन
मशीन पुरानी होने पर तत्कालीन डीएम नेहा शर्मा ने नई मशीन प्लांट के लिए उपलब्ध करवाई। वर्तमान स्थिति यह है कि अधिकारियों की लापरवाही के चलते पैडों की बिक्री नहीं हो रही है। सरकारी विभाग ही प्राइवेट कंपनियों से पैड खरीद रहे हैं। इसके चलते लाखों की संख्या में पैड बने हुए कमरों में भरे पड़े हैं। पैड बनाने के लिए छह महिला कर्मचारी कार्यरत हैं। जिनके द्वारा एक दिन में करीब एक हजार से डेढ़ हजार तक पैड तैयार किए जाते हैं।
यहां होती है खपत
टूंडला में बनने वाले सैनेटरी नैपकिन की खपत जिला जेल, कस्तूरबा गांधी विद्यालय के अलावा आशा और आंगनवाड़ियों के द्वारा गांवों में की जाती है जबकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जेम पोर्टल के जरिए पैडों की खरीददारी की जा रही है।
कानपुर और वृंदावन से आता है कच्चा माल
पैड बनाने के लिए कच्चा माल दुर्गा एंटरप्राइजेज कानपुर और रेड क्राॅस कुटीर उद्योग वृंदावन से मंगाया जाता है। एक पीस तैयार करने में करीब 85 पैसे की लागत आती है। जिसे तैयार करने के बाद ढाई रुपए प्रति पीस के हिसाब से बेचा जाता है।
ये बोले एडीओ-
सहायक विकास अधिकारी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि नैपकिन पैड काफी मात्रा में हमारे पास तैयार रखे हैं लेकिन खपत नहीं है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में प्रत्येक महीने यदि सौ पैकेट खरीदना अनिवार्य कर दिया जाए तो प्लांट काफी बेहतर हो सकता है। महिला कर्मचारी रेखा ने बताया कि एक दिन में हम सभी करीब एक हजार से डेढ़ हजार पैड़ तैयार कर देते हैं। मांग कम होने के कारण फिलहाल कम संख्या में पैड तैयार किए जा रहे हैं।
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