इन गांवों में हो रही पैदावार
इस खेती की शुरुआत टूंडला विकास खंड के गांव चंडिका व चुल्हावली में की गई है। प्रगतिशील किसान विजय पाल सिंह और चंचल चौधरी ने पांच—पांच बीघा खेत में खरबूज की खेती की है। उन्होंने बताया कि पांच बीघा खेत में उन्होंने करीब सात टन खरबूज उगाया है। इसकी मांग सामान्य खरबूज से कहीं अधिक है। फसल तैयार होने के साथ ही इसके शौकीन खेत से ही खरबूज खरीदकर ले जाते हैं। इसकी कीमत भी अन्य खरबूजों से अच्छी मिल रही है। पहली बार टूंडला क्षेत्र में इस प्रकार की फसल तैयार की गई है।
रेलवे गार्ड व जैविक खेती के जानकार अमित पाल सिंह ने बताया कि ताईवानी खरबूज की फसल 90 दिन में तैयार हो जाती है। इसके लिए खेत में तीन—तीन फुट के बेड तैयार किए जाते हैं। मिट्टी और खरबूज के बीच में मलचिंग पेपर लगाया जाता है जिससे वह मिट्टी के संपर्क में न आए। वर्मी कंपोस्ट खाद को बेड़ों के इर्द—गिर्द नालियों में डाला जाता है। इस खेती को तैयार करने के लिए किसानों को निश्शुल्क प्रशिक्षण भी दिया गया था। ताइवान बॉबी वैरायटी से मीठा खरबूजा अभी तक भारतीय बाजार में उपलब्ध नही है। इसे 15 दिन तक स्टोर किया जा सकता है। फसल को कीटों से बचाने के लिए नींम और धतूरे के पत्तों को पीसकर गौ मूत्र में मिलाकर स्प्रे किया जाता है।