पिताजी ने दिखाया कुछ
पिताजी ने कहा इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो। छोड़ो इसे आओ मेरे साथ एक अनमोल खजाना दिखाता हूँ मैं तुम्हे! पिता घनश्याम और दोनों पुत्र पवन और मदन उनके साथ रवाना हुये। पिताजी ने कहा देखो यदि तुम आपस मे लड़े तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा! अब दोनो पुत्रों ने खजाने के चक्कर मे एक समझौता किया की चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नही प्रेम से यात्रा पे चलेंगे!
पिताजी ने कहा इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो। छोड़ो इसे आओ मेरे साथ एक अनमोल खजाना दिखाता हूँ मैं तुम्हे! पिता घनश्याम और दोनों पुत्र पवन और मदन उनके साथ रवाना हुये। पिताजी ने कहा देखो यदि तुम आपस मे लड़े तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा! अब दोनो पुत्रों ने खजाने के चक्कर मे एक समझौता किया की चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नही प्रेम से यात्रा पे चलेंगे!
बस से की यात्रा
गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर सीट दो की मिली और वह तीन थे। अब पिताजी के साथ थोड़ी देर पवन बैठे तो थोड़ी देर मदन। ऐसे चलते-चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया, तब गाँव आया।
घनश्याम दोनो पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये हवेली चारों तरफ से सुनसान थी। घनश्याम जी ने देखा कि हवेली मे जगह—जगह कबूतरों ने अपना घोंसला बना रखा है। वह वहीं बैठकर रोने लगे।
गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर सीट दो की मिली और वह तीन थे। अब पिताजी के साथ थोड़ी देर पवन बैठे तो थोड़ी देर मदन। ऐसे चलते-चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया, तब गाँव आया।
घनश्याम दोनो पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये हवेली चारों तरफ से सुनसान थी। घनश्याम जी ने देखा कि हवेली मे जगह—जगह कबूतरों ने अपना घोंसला बना रखा है। वह वहीं बैठकर रोने लगे।
पुत्रों ने पूछा रोने का कारण
पुत्रों ने पूछा क्या हुआ पिताजी आप रो क्यों रहे हैं? रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा जरा ध्यान से देखो इस घर को जरा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था। तुम्हे याद है बच्चों इसी हवेली के लिये मैंने अपने बड़े भाई से बहुत लड़ाई की थी। यह हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया और फिर वक्त्त बदला एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा। अच्छा तुम ये बताओ बेटा कि जिस सीट पर हम बैठकर आये थे क्या वो बस की सीट हमें मिल गई? और यदि मिल भी जाती तो क्या वो सीट हमेशा-हमेशा के लिये हमारी हो जाती? मतलब उस सीट पर हमारे सिवा और कोई न बैठ सकता। दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है। बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती हैं। पहले हम बैठे थे आज कोई और बैठा होगा और पता नही कल कोई और बैठेगा।
पुत्रों ने पूछा क्या हुआ पिताजी आप रो क्यों रहे हैं? रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा जरा ध्यान से देखो इस घर को जरा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था। तुम्हे याद है बच्चों इसी हवेली के लिये मैंने अपने बड़े भाई से बहुत लड़ाई की थी। यह हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया और फिर वक्त्त बदला एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा। अच्छा तुम ये बताओ बेटा कि जिस सीट पर हम बैठकर आये थे क्या वो बस की सीट हमें मिल गई? और यदि मिल भी जाती तो क्या वो सीट हमेशा-हमेशा के लिये हमारी हो जाती? मतलब उस सीट पर हमारे सिवा और कोई न बैठ सकता। दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है। बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती हैं। पहले हम बैठे थे आज कोई और बैठा होगा और पता नही कल कोई और बैठेगा।
पिता की छूट गई हंसी
वैसे भी उस सीट में क्या धरा है जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है! पिताजी पहले हँसे और फिर आंखों में आंसू भरकर बोले, देखो यही मैं तुम्हे समझा रहा हूँ कि जो थोड़ी देर के लिये तुम्हारा है, तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था। थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा। बस बेटा एक बात ध्यान रखना कि इस थोड़ी सी देर के लिये कहीं तुम अपने अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना यदि पैसों का प्रलोभन आये तो इस हवेली की इस स्थिति को देख लेना कि अच्छे—अच्छे महलों में भी एक दिन कबूतर अपना घोंसला बना लेते हैं। बेटा मुझे यही कहना था कि बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज सवारियां बदलती रहती हैं। उस सीट के खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना, जिस तरह से बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था बस वैसे ही जीवन की यात्रा मे भी तालमेल बिठाते रहना। दोनो पुत्र पिताजी का अभिप्राय समझ गये और पिता के चरणों में गिरकर रोने लगे।
वैसे भी उस सीट में क्या धरा है जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है! पिताजी पहले हँसे और फिर आंखों में आंसू भरकर बोले, देखो यही मैं तुम्हे समझा रहा हूँ कि जो थोड़ी देर के लिये तुम्हारा है, तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था। थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा। बस बेटा एक बात ध्यान रखना कि इस थोड़ी सी देर के लिये कहीं तुम अपने अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना यदि पैसों का प्रलोभन आये तो इस हवेली की इस स्थिति को देख लेना कि अच्छे—अच्छे महलों में भी एक दिन कबूतर अपना घोंसला बना लेते हैं। बेटा मुझे यही कहना था कि बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज सवारियां बदलती रहती हैं। उस सीट के खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना, जिस तरह से बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था बस वैसे ही जीवन की यात्रा मे भी तालमेल बिठाते रहना। दोनो पुत्र पिताजी का अभिप्राय समझ गये और पिता के चरणों में गिरकर रोने लगे।
शिक्षा :- मित्रों, जो कुछ भी ऐश्वर्य -धन सम्पदा हमारे पास है वह सबकुछ बस थोड़ी देर के लिये ही है। थोड़ी-थोड़ी देर मे यात्री भी बदल जाते है और मालिक भी। इसलिए यदि सदा के लिए सुख शांति चाहिए तो सदा एकरस रहने वाले और कभी नहीं बदलने वाले उस परमपिता परमात्मा शिव को ही सदा याद करो।