अपने शहर से बाहर रहने वाले अपनी मां के हाथ का यानी घर का खाना नहीं खा पाते हैं। इससे उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है। घर का खाना ही बेस्ट है।
केस 1- अमन मथुरा का रहने वाला है और आगरा में रूम लेकर रहता है। उसे यहां खाने की समस्या का सामना करना पड़ता है। कुछ समय तक वह रेस्त्रां व होटलों में दोस्तों के साथ खाना खा लेता था, लेकिन खाना उसे रास नहीं आया। फिर उसने टिफिन लगा लिया, लेकिन तब भी उसे खाने में संतुष्टि नहीं मिली। खान-पान सही न होने और बाहर का खाने से वह अक्सर बीमार हो जाता है ।
केस2- रागिनी आगरा में द्वितीय वर्ष की छात्रा है और हॉस्टल में रहती है। यूं तो हॉस्टल में खाना समय पर मिलता है लेकिन खाना इतना पौष्टिक व स्वाद वाला ना होने से वह भी बाहर का खाना आए दिन खाती है। एसे में खाने-पीने का संतुलन बिगडऩे से उसका वजन दिन-ब-दिन घटता जा रहा है। आज उसे अपने मां के हाथ से बने खाने का महत्व पता चल रहा है।
घर का खाना ही बेस्ट
आगरा. मां के हाथ के खाने की कोई होड़ नहीं होती। जब तक घर में रहते हैं, तब तक इस बात का अंदाजा नहीं होता कि मां के हाथ का बना खाना सेहत के लिए वरदान है, लेकिन जैसे ही पांव घर से बाहर पड़ते हैं, इसका मूल्य पता चल जाता है। डॉक्टर्स भी इस बात को मानते हैं कि मां के हाथ का खाना या कहें घर का खाना ही बेस्ट होता है। लेकिन, जो लोग घरों से दूर रह रहे हैं, उनके लिए ये संभव नहीं होता। ऐसे में वे जल्द बीमारियों की चपेट में आते हैं और उनकी सेहत भी बिगड़ जाती है। इसके अलावा फास्ट फूड का कल्चर भी लोगों की विशेषकर युवाओं की सेहत को बिगाड़ रहा है।
आता है बहुत याद
आगरा के कई युवा जो अपने-अपने घरों से दूर रह रहे हैं, वे यह मानते हैं कि उनकी फूड हैबिट्स खराब हो चुकी हैं। वे यहां घर के बने खाने को मिस करते हैं। शहर के सरकारी चिकित्सालय के सीनियर फिजीशियन डॉ. अमित महाजन के अनुसार के अनुसार, मां के हाथ का खाना या घर का बना खाना सेहत के लिए बेस्ट होता है। लेकिन, अब लोग ज्यादातर पति-पत्नी जॉब में होते हैं, बच्चे कहीं दूर शहरों में पढ़ाई कर रहे होते हैं तो इससे घर के बने खाने में अंतराल आ जाता है। वे कभी जहां साल भर घर का खाना खाते होते हैं, वहीं अब कुछ महीने ही घर का खाना खा पाते हैं।
हावी है फास्ट फूड कल्चर
अधिकतर बाहर का खाना खाने से सेहत खराब हो जाती है। वहीं, अभी जो फास्ट फूड का कल्चर हावी है, उससे भी स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। विशेषकर, बच्चे और युवा क्रॉनिकल इलनेस का शिकार हो रहे हैं। बीमारियां उन्हें तुरंत पता नहीं पड़ती लेकिन बाद में जाकर इसका पता चलता है। गर्मियों में सबसे ज्यादा उल्टी-दस्त के मरीज आते हैं। इसमें या तो वो गलत खान खा लेते हैं या फिर खाने के प्रति लापरवाही या किसी चीज में मिलावट उनको अपनी चपेट में ले लेती है।