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वर्ल्ड कप में पाकिस्तानी फुटबॉल का जलवा, लेकिन वहां मजदूर बदहाल

locationनई दिल्लीPublished: Nov 26, 2022 01:32:55 pm

Submitted by:

lokesh verma

FIFA World Cup 2022 : दुनिया का सबसे महंगा फीफा विश्व कप 2022 कतर की मेजबानी में आयोजित किया जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं वर्ल्ड कप में इस्तेमाल की जाने वाली फुटबॉल की सिलाई कैसे होती है? एक फुटबॉल की मजदूरी क्या है और यह कहां बनाई जाती है? आज हम आपको इस बारे में बताने जा रहे हैं।

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पाकिस्तान में बनती हैं दुनिया की दो-तिहाई से अधिक फुटबॉल।

FIFA World Cup 2022 : क्या आप जानते हैं कि कतर में खेले जा रहे फीफा विश्व कप में इस्तेमाल की जाने वाले खूबसूरत फुटबॉल किस देश में बनाई जाती है? यह फुटबॉल पाकिस्तान के पूर्वोत्तर में कश्मीरी सीमा से सटे शहर सियालकोट में बनाई जाती हैं। विश्व कप में इस्तेमाल की जा रही आधिकारिक फुटबॉल का नाम अल रिहला है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ कतर ही नहीं, बल्कि कई फीफा विश्व कप में यहां बनीं गेंदें इस्तेमाल की गई हैं। इसके साथ ही दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाली दो-तिहाई से ज्यादा फुटबॉल सियालकोट में ही बनती हैं। लेकिन, सबसे बड़ी विडम्बना है कि सबसे महंगा फीफा वर्ल्ड कप जिस फुटबॉल से खेला जाता है, उस फुटबॉल को बनाने में मेहनत ज्यादा है और मजदूरी बेहद कम है।
एक दिन में महज 480 रुपये ही कमा पाते हैं कारीगर

एक पूरी गेंद की सिलाई करने में करीब तीन घंटे लग जाते हैं। यह काफी मेहनत का काम है और एक महिला दिन में तीन गेंद की सिलाई ही पूरी कर पाती है। इस तरह वह एक दिन में करीब 480 और महीने में करीब 9,600 रुपए कमा पाती है। इस लिहाज से इस काम में मेहनत ज्यादा और कमाई काफी कम है।

सस्ती गेंद बनाने में चीन के सामान का इस्तेमाल

फुटबॉल बनाने के लिए सिंथेटिक चमड़े का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए जरूरी सामान यानी कपास, पॉलिएस्टर, पॉलीयुरेथेन और अन्य चीजें अलग-अलग देशों से आती हैं। वहीं, सस्ती फुटबॉल बनाने के लिए चीन से आई सामग्री का उपयोग किया जाता है।

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द. कोरियाई, जापान के सामान से महंगी गेंद

दक्षिण कोरियाई सामग्री का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाली गेंदों के लिए किया जाता है। वहीं, जर्मनी की सबसे बड़ी लीग बुंदेसलिगा के अलावा अन्य यूरोपीय लीग में इस्तेमाल होने वाली फुटबॉल तैयार करने के लिए जापानी सामान का इस्तेमाल किया जाता है।

महिलाएं करती हैं गेंद की सिलाई

रिपोर्ट के मुताबिक, सियालकोट में करीब 60 हजार से ज्यादा लोग फुटबॉल बनाने के काम से जुड़े हैं। यहां 80 फीसदी फुटबॉल में हाथ से सिलाई की जाती है। दरअसल, सिलाई वाली गेंदें ज्यादा स्थिर होती है और मशीनों से सिली जाने वाली गेंदों की तुलना में अधिक टाइट होती हैं।

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