scriptकौंडिय़ा में श्रीमद्भागवत तथा बोहानी में श्रीराम कथा का समापन | Srimad Bhagwat in Kondiya, and in Bohani, concluding Shriram Katha | Patrika News

कौंडिय़ा में श्रीमद्भागवत तथा बोहानी में श्रीराम कथा का समापन

locationगाडरवाराPublished: Sep 08, 2018 04:06:43 pm

Submitted by:

ajay khare

श्रीमद भागवत कथा सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है

Bhagwat

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कौंडिय़ा। गांव के जवाहर चौक स्थित बड़े मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद भागवत कथा का समापन भंडारा प्रसादी का आयोजन के साथ हुआ। बड़ी संख्या में लोगों ने दान दक्षिणा देकर धर्मलाभ लिया। कथा के अन्तिम दिन भी श्रीमद् भागवत का रसपान पाने के लिए भक्तों का सैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा। कथा वाचक वैष्णवी गोस्वामी ने श्रीमद भागवत कथा का समापन करते हुए कहा प्रभु कृष्ण के 16 हजार शादियों के प्रसंग के साथ, सुदामा चरित, और परीक्षित मोक्ष की कथायें सुनाई। इन कथाओं को सुनकर सभी भक्त भाव विभोर हो गए। कथा समापन के दौरान पंडित संदीपगिरी गोस्वामी ने भी भक्तों को भागवत को अपने जीवन में उतारने की बात कही, जिससे सभी लोग धर्म की ओर अग्रसर हों। सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का सन्देश दिया। साथ ही सबको बताया कि श्रीमद भागवत कथा सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है, वहीं इसे कराने वालों के पितृ तर जाते हैं।
बोहानी में भी रामकथा का समापन
समीपी गांव बोहानी में नव दिवसीय रामकथा के आठवें दिन राम राज्य के राज्याभिषेक के अवसर पर रामकथा के मर्मज्ञ प्रसंग सुनाया। भगवान के राजतिलक के साथ कथा का समापन हुआ। गांव वालों ने भंडारा प्रसादी कर धर्मलाभ लिया। रामकथा के प्रवचनकर्ता रामहृदयदासजी महाराज रामायणी कुटी चित्रकूटधाम कथावाचक ने कहा कि गाय, गोप, गोपिका भगवान को प्रिय हैं। जो व्यक्ति इनसे प्रेम करता है, उस पर भगवान प्रसन्न होते हैं। गायों की सेवा सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है। महाराज ने संगीतमयी राम कथा के अंतिम दिन केवट प्रसंग, राम-भरत मिलाप, भगवान राम के द्वारा भक्तों का उद्धार, लंका का दहन, रावण का अंत, राम के राजतिलक के प्रसंग पर कथा सुनाई। कथा के समापन पर राम राज्याभिषेक उत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर श्रोता भजनों की धुनों पर झूम उठे। कथावाचक ने कहा कि प्रेम, प्रार्थना और प्रभु भक्ति से ही प्रभु प्रकट होते हैं। प्रभु को प्रकट करने के लिए समय, स्थान, स्थिति नहीं बल्कि समर्पण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रीराम से जो प्यार नहीं करता है, वह किसी का नहीं बन सकता। कथा के अंतिम दिन राम द्वारा लंका पर विजय की कथा भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी का प्रसंग सुनाया। इस दौरान श्रोताओं ने श्रीराम के नाम के जयकारे लगाए।

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