शौचालय निर्माण में 50 लाख की गड़बड़ी, हाईकोर्ट ने कलेक्टर से मांगा जवाब
इस मामले में हाईकोर्ट ने रायपुर कलेक्टर ओपी चौधरी को छह सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है।

रायपुर/तिल्दा-नेवरा. शहर से लगे ग्राम तुलसी-नेवरा में शौचालय निर्माण में हुई 50 लाख रुपए की गड़बड़ी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले में हाईकोर्ट ने रायपुर कलेक्टर ओपी चौधरी को छह सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है।
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत ग्राम पंचायत तुलसी-नेवरा में 612 घरों में शौचालय निर्माण की स्वीकृति मिली थी। इसके लिए जिला पंचायत से दो किस्तों में 50 लाख रुपए मिल गए, लेकिन पैसे मिलने के बाद भी आज तक सभी घरों में शौचालय नहीं बना है। शौचालय नहीं बनने के बावजूद ग्राम पंचायत को ओडीएफ घोषित करा दिया गया। उपसरपंच वीरेंद्र वर्मा और कुछ पंचों ने इसकी शिकायत जनपद पंचायत कार्यालय में की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। तब जिला पंचायत और रायपुर कलक्टर से शिकायत की, लेकिन वहां भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस पर मामले में सरपंच-सचिव से लेकर जनपद व जिला पंचायत के अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका हुई। जब विभागीय स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, तब उपसरपंच ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव, रायपुर कलक्टर और जनपद पंचायत तिल्दा के सीईओ को नोटिस जारी कर छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
आधे-अधूरे निर्माण के बावजूद ओडीएफ
प्रोत्साहन राशि के अभाव में अधिकतर ग्रामीणों का शौचालय पूरा नहीं बन सका। वे प्रथम किस्त की राशि मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। इसी बीच ग्राम पंचायत ने 18 फरवरी को ओडीएफ महोत्सव का आयोजन किया और तुलसी-नेवरा को ओडीएफ ग्राम पंचायत घोषित कर दिया। जबकि शौचालय निर्माण अभी तक अधूरा पड़ा है।
हाईकोर्ट के नोटिस से मची खलबली
इस फर्जी ओडीएफ मामले की शिकायत पांच माह पहले जनपद पंचायत और जिला पंचायत में की गई, लेकिन जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई। जनपद और जिला पंचायत के अधिकारियों ने कलक्टर के आदेश को दरकिनार करते हुए कोई कार्रवाई नहीं की। अब चूंकि हाईकोर्ट से नोटिस मिला है, तो प्रशासनिक हलके में खलबची मची हुई है। इस पर रायपुर कलक्टर ओमप्रकाश चौधरी ने जिला पंचायत के अधिकारियों को तत्काल जांच और कारवाई का निर्देश दिया।
यह मामला है
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत् ग्राम पंचायत तुलसी-नेवरा के 612 घरों में शौचालय निर्माण की स्वीकृति मिली थी। जनपद पंचायत की ओर से इन हितग्राहियों को स्वयं शौचालय निर्माण के लिए कहा गया था। इस दौरान यह भी कहा गया था कि जिला पंचायत से फंड मिलने पर हितग्राहियों को प्रोत्साहन राशि के रूप में दिया जाएगा। अधिकारियों के कहने पर ग्रामीणों ने अपने पैसों से शौचालय निर्माण प्रारंभ कर दिया। अपने पास में पैसे नहीं होने पर कई गरीब ग्रामीणों ने जेवर और अन्य कीमती सामान को बेचकर शौचालय बनाना शुरू कर दिया, लेकिन प्रोत्साहन राशि नहीं मिलने पर निर्माण बीच में ही छोड़ दिया। जबकि हितग्राहियों को प्रोत्साहन राशि देने के लिए जिला पंचायत ने दो किश्तों में ग्राम पंचायत को 50 लाख रुपए दे दिए। इसके बावजूद हितग्राहियों को भुगतान नहीं किया गया।
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