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यहां मजदूरों ने PM मोदी की इस योजना का किया बहिष्कार, अब गांव-गांव हो रहे खाली

locationगरियाबंदPublished: Feb 14, 2018 07:18:35 pm

आलम यह है कि अब परिवार के पालन-पोषण के लिए लोग गांव घर छोड़कर दूसरे राज्य जाने लगे हैं।

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अब गांव-गांव हो रहे खाली

गरियाबंद/मैनपुर. छत्तीसगढ़ के दूरस्थ ग्रामीण इलाके के मजदूरों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस योजना का बहिष्कार कर दिया है। जिसके चलते इन गांवों में सन्नाटा पसरा हुआ है। सरकार के खिलाफ मजदूरों का यह गुस्सा अब धीरे-धीरे दूसरे जिलों में भी फैल रहा है। आलम यह है कि अब परिवार के पालन-पोषण के लिए लोग गांव घर छोड़कर दूसरे राज्य जाने लगे हैं।

प्रधानमंत्री की इस योजना को मजदूरों ने किया बहिष्कार
तहसील मुख्यालय मैनपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर ग्राम धोबनमाल के ग्रामीण केन्द्र सरकार की मनरेगा को 800 मजदूरों ने पिछले वर्ष से ही बहिष्कार कर दिया है। क्योंकि निर्धारित मापदंड अनुसार सप्ताहभर का 120 रुपए मूल्यांकन किया जाता है। लेकिन इन 800 मजूदरों को रोजगारगारंटी के अंतर्गत सही राशि नहीं दिया जा रहा था।

मनरेगा मजदूर हुए खफा
वर्ष 2016-17 मे पूरन खलिया तालाब करीब 7 लाख एवं निजी डबरी डेढ़ लाख रुपए से स्वीकृति हुआ। इसमें मजदूरों को रोजी हिसाब से 10 से 30 रुपए तक दिया गया। अधिकांश मजदूरों सप्ताहभर की मजदूरी तो 120 रुपए दी गई। जबकि मजदूरों द्वारा निर्धारित मापदंड अनुसार कार्य किया गया। राशि काटने से खफा मजदूर मनरेगा कार्य से तौबा कर लिया है।

जिसके चलते गांव में डबरी सड़क, पुलिया, तालाब गहरीकरण जैसे अनेक विकास कार्य नहीं हो पा रहे हैं। दिलारसिंह, तातूलराम, तुलसीराम रूवर्शी, खमाराम, भुवन, अर्जुन अन्य मजदूरों ने बताया कि पंचायत के आश्रित ग्राम उपरपारा के मनरेगा कार्य में किए मजदूरों की शत-प्रतिशत मजदूरी आंख मूंद कर दी जा रही है, लेकिन भरूवामुड़ा के मजदूरों के साथ कम कार्य करना बताकर भेद-भाव होता है। बकायदा तकनीकी सहायक बिना जमीनीस्थल देखे ही कार्यों का मूल्यांकन कार्यालय पर बैठे करते हैं। जिसका खामियाजा मजदूरों को भुगतना पड़ता है। यही वजह है कि गरीबों के लिए आजीविका संसाधनों को बढ़ाने की जगह लगातार घटता जा रहा है।

ग्रामीण दूसरे राज्य कर रहे पलायन
ग्रामीणों ने बताया कि 400 से अधिक लोग परिवार छोड़ पलायन की ओर-भरूवामुड़ा धोबनमाल, उपरपारा, मुचबहाल आदि गांव के लोग आंध्रपदेश, ओडिशा गोवा में पलायन के लिए चले गए हैं। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि बीपीएल के नीचे जीवन यापन करने वाले मजदूर हमेशा रोजगार के सहारे परिवार का भरण-पोषण किया जाता है क्येांकि गांव में रोजगारगारंटी के तहत मजदूरी करने पर अधिकारी मनचाह राशि काटते है। परिवार चलना तो दूर भर पेट बच्चों को खिलाया नहीं जा सकता। यहीं कारण है कि दूसरे राज्यों में ग्रामीण काम तलाश में निकल रहे हैं।

तकनीकी सहायक को हटाने जनपद घेराव
ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि वहां के तकनीकी सहायक के विरुद्ध मुचबहाल के सैकड़ों मजदूरों ने भी मोर्चा खोलकर जनपद अधिकारियों के समक्ष शिकायत किया है। लेकिन तकनीकी सहायक पहुंच के चलते वे यथावत काबिज हैं। लेकिन इसबार मुख्यालय पहुंचकर जनपद घेराव करने की बात कही है। साथ ही ग्रामीणों ने यह स्पष्ट कहा है कि जब तक तकनीकी सहायक को नहीं हटाया जाएगा। लगातार मनरेगा कार्य में राशि काटी जा रही है। तय मापदंड के अनुसार कार्य होने के बाद भी भेद-भाव किया जा रहा है।

जनप्रतिनिधियों का कहना
मुकुन्द राम कोमर्रा सरपंच ग्राम पंचायत धोबनमाले कहा कि अभी स्वीकृति कार्य है, मजदूर पिछले डेढ़ साल से मनरेगा कार्य नहीं कर रहे हैं। मनरेगा कार्य में इस बार मजदूरों को समझाकर कार्य कराया जाएगा। अहलेश देवप्रसाद पीओ मैनपुर ने कहा कि मजदूरों के कार्य अनुसार मूल्यांकन किया जाता है। फिर भी मामले को लेकर जानकारी लिया जाएगा। मजदूरों से मनरेगा में कार्य करने के लिए कहा जाएगा।

पचास दिन का रोजगार मुश्किल
ग्रामीणों ने बताया कि गांव-गांव में रोजगार आसानी से मिल सके इसके लिए सरकार ने वर्ष 2005 में मनरेगा कार्य योजना निकाली साथ ही 100 दिनों को बढ़ाकर 200 दिन कर दिया। लेकिन यह उद्देश्य धरातल में जनप्रतिनिधि सहित अधिकारियों के लिए कमाई का जरिया बना है। क्योंकि अपने-अपने समर्थकों को बिना कार्य किए राशि दिलाने और उसमें कुछ हिस्सा अपने लिए मांगते हंै। यही कारण है कि गांव अधिकांश मजदूरों को 50 दिन से अधिक काम नहीं मिल पाया।

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